तुम बिल्कुल भी रूमानी नहीं हो
तुम बिल्कुल भी रूमानी नहीं हो
क्या कहूँ तुमसे तुम्हारे बारे में, मेरी इस उलझी सी दुनिया की खूबसूरत हिस्सा हो तुम…
क्या सुनूँ दुनिया से तुम्हारे बारे में जब हृदय पटल पर अंकित अजीब सा किस्सा हो तुम …
पल का प्यार, दशों नाराजगी, सेंकड़ों उलाहने, हजारों शिकवे, लाखों झगड़े हें तुमसे…
करोड़ों बार सोचता हूँ जब निभती ही नहीं हे तो अलग ना हो जाऊं तुमसे….
देर तक सोना भी चाहूँ तो बार बार चाय ठंडी होने की किच किच…
अखबार पढ़ूँ तो तो घर परिवार की चिंता नही होने की पुरानी रट…
खाने की मेज पर भी चैन कहाँ बच्चों के झगड़े की कहानी झेलो….
ऑफिस से आने में थोड़ा लेट क्या हो जाओ बड़ा बतंगड़ झेलो…
टी वी ऑन करो तो फटकार कि बच्चे पढ़ रहे हैं…
गाल को छूकर कमर में हाथ क्या डाला खबरदार बच्चे बढ़ रहे हैं…
हर वक्त ताना कि हमें तो बस दोस्त, ऑफिस व घर बालों कि फिक्र है…
बच्चों, रसोई, मेरी कमर का दर्द और सातों दिन बिना छुट्टी के लगे रहने का कोई जिक्र है…
मैं भी कुछ मदद कर दूँ झाड़ू या चाकू तो बता दो तुम…
आज संडे को तुम भी छुट्टी रखो बच्चों के साथ बाहर ही खाएँगे हम…
चुप रहो जी क्या अब मुझे खुद की नजरों से गिराने का इरादा है…
कोई लॉटरी निकली है क्या जो होटल में पैसा उड़ाना है….
चिंकी कि फीस, महीने का राशन, माँजी कि दवाई की चिंता नहीं है…
तुमने खुद के जूते देखे है क्या, गई थी मोची पर, पर उसने सिला नहीं है…
मस्ती के मूड में भी क्यों ये जिम्मेदारियाँ याद करती हो…
साड़ी, बिंदी, लिपिस्टिक वर्षों से नहीं ली तुमने 40 की उम्र में भी 60 की दिखती हो…
बताओ कैसे करूँ मैं तुमसे प्यार तुममें वो बात नहीं है…
सारा दिन यूं ही खटती हो, मेरे लिए तो तुम्हारे पास एक रात नही है…
सोचता हूँ कि अलग हो ही जाऊँ तुमसे और बिंदास रहूँ…
अपने मन जागूँ, सोऊं, आऊँ, जाऊँ, खुश रहूँ और खास रहूं…
पर यार जब तुम बच्चों को लेकर माँ के पास गई थी दिन याद आजाते हैं…
मेरे दिल दिमाग पर इस कदर छा जाते हैं…
जब बेफिक्र होकर शाम को देर से घर आता था…
पर तूम नहीं थी तो सफाई देने के लिए मन अकुलाता था…
अरे यार खाना खाते समय भी बच्चों कि शिकायत नहीं थी..
मुझे भी तो इसके बिना अब खाने कि आदत भी नहीं थी…
अखबार भी बिना उलाहने के पढ़ पाता नहीं था…
तुम्हारी खट पट सुने बिन देर तक सो पता नहीं था…
तुम बिन तो ये लिपा पुता घर भी निरीह लगता था…
द्वार, आँगन, छत, दीवार व आला अजीव लगता था…
दम घुटती है यार तुम्हारे बिन निर्जीव से इस घरौंदे में…
घाटा नहीं है दिखता अब खट खट भरे इस जिंदगी के मसौदे में…
अब तो लगता है तुम्हारा झगड़ना ही तो मेरी सांसों का आधार है…
तुम बिल्कुल भी रूमानी नहीं हो शायद यही तो प्यार है…
भारतेंद्र शर्मा (भारत)
धौलपुर