तुम दोषी हो?
गूँज सुनाई पड़ती है
मेरे कानों को।
टकरा कर जो मानवता के
पिछवाड़े से चिल्लाती है।
कह कर केवल
तुम दोषी हो।
सरमन की गुर्राहट
पेटन की मक्कारी ।
ताशकंद के आदेशों की
यह बरबादी।
कसक रही है
नस-नस में
भारत माँ के तन में।
सोच रही है शायद
कोई सुत उठ जाये
बतला दे तुमको गर्जन से
तुम दोषी हो।
हे तानाशाही के पिट्ठू
चीनी चमचे।
बतला देना मुझको
खाकर लाल बहादुर,
छिपा हुआ इंसान नहीं
सिसकी लेकर
बिलखाया होगा।
कह कर केवल
तुम दोषी हो।
मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारों के
उजड़े द्वारे।
माताओं की आँखों के
छितराये तारे।
बता रहे हैं आज
हमारी संगीनों को
तुम दोषी हो।