तुम्हारी जाति ही है दोस्त / VIHAG VAIBHAV
तुम्हारी चाल पर उसका असर है
जब तुम धरती को दो इंच धँसाते हुए कदम रखते हो
और महसूस करते हो खुद को धरती से दो फुट ऊपर
तो तुम्हारी देह की भौतिकी से
जमींदारी और पवित्र महान ब्राह्मण होने का दम्भ
झुनझुने की तरह बजता है
जिससे मुझे मेरे पुरखों की चीखें सुनाई पड़ती हैं
तुम्हारी जुबान पर बैठा हुआ
तुम्हारे पूर्वजों के दुराचारों का स्वाद
तुम्हारी भाषा को लिजलिजी और मौकापरस्त बनाता है
तुम्हारी जाति ही है दोस्त
तुम्हारी त्वचा पर भभूत की तरह चिपकी हुई
तुम्हें बहुत अश्लील बनाती है
तुम सच को सच की तरह नहीं कह पाते
नहीं कह पाते झूठ को झूठ की तरह
तो यह साहस की कमी का मसअला नहीं है दोस्त
तुम्हारी जाति ही है
जो हर बार आड़े आ जाती है
इसमें तुम्हारा कसूर नहीं है
यदि तुम इस सदी के सबसे खूँखार हत्यारे को
करुणा से सराबोर देखकर रो देते हो
और एक सामान्य सा तर्क नहीं कर पाते हो कि
सभ्यता की जिन लाशों पर चढ़कर उसने कुर्सी पायी है
उसे उनकी याद भी आती है या नहीं
तुम्हारी जाति ही है दोस्त
जो तुम्हें इस तरह सोचने से रोक देती है
और तुम्हें उस महान हत्यारे के पक्ष में ला खड़ा कर देती है
तुम्हारी जाति ही है कि
धन्ना धोबी और मुनमुन मुसहर की लड़की को स्कूल जाते देख
तुम चिंतित , दुःखी और उदास होकर हँसते हो
या न्याय , समानता और अधिकारों की बात करते चमार कवि से
उसकी हर बात पर खीझते हो
आक्रोश की भाषा को वैदिक व्याकरण से ख़ारिज करते हो
और किसी लड़ाके को देख
मुस्कुराते हो स्खलित व्यंग की मुद्रा में
यह अनायास ही नहीं है कि
तुम्हें अपनी ही जाति में प्रेम होता है
भावना की अतलतम सतह पर जमी हुई काई सी
यह तुम्हारी जाति ही है दोस्त
जाति ने तुमको चुना था
पर तुम मनुष्य होना चुन सकते थे
और ऐसा करने वाले तुम पहले या आखिरी व्यक्ति भी नहीं होते
पर कितनी गलीज़ सच्चाई है दोस्त
मेमने के खून का स्वाद चख चुका भेड़िया
मेमने की चीख के पक्ष में हर तर्क पर हँसता है
बस यही तुम्हारी हँसी
और मेमने की गुर्राहट पर
अपने पुरखों की अमानुषिक महानता में लाया गया हजार तर्क
तुम्हें मनुष्य होने से रोक देता है
तुम्हारी जाति ; तुम्हारी जाति ही है दोस्त
जो तुम्हें बार – बार मनुष्य होने से रोक देती है ।
© Vihag Vaibhav