Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
31 Oct 2016 · 6 min read

रमेशराज की जनकछन्द में तेवरियाँ

|| जनकछन्द में तेवरी || —1.
………………………………………………………
हर अनीति से युद्ध लड़
क्रान्ति-राह पर यार बढ़, बैठ न मन को मार कर।

खल का नशा उतार दे
शब्दों को तलवार दे, चल दुश्मन पर वार कर।

ले हिम्मत से काम तू
होती देख न शाम तू, रख हर कदम विचार कर।

घनी वेदना को हटा
घाव-घाव मरहम लगा, पतझड़ बीच बहार कर।

अनाचार-तम-पाप की
जग बढ़ते संताप की, रख दे मुण्डि उतार कर।

कुंठा से बाहर निकल
अपने चिन्तन को बदल, अब पैने हथियार कर।
+रमेशराज

|| जनक छन्द में तेवरी || —2.
…………………………………………..
सिस्टम में बदलाव ला
दुःख में सुख के भाव ला, आज व्यवस्था क्रूर है।

अंधकार भरपूर है
माना मंजिल दूर है, बढ़ आगे फिर नूर है।

मन में अब अंगार हो,
खल-सम्मुख ललकार हो, कह मत उसे ‘हुजूर है’।

अग्निवाण तू छोड़ दे
चक्रब्यूह को तोड़ दे, बनना तुझको शूर है।
+रमेशराज

|| जनक छन्द में तेवरी || —3.
…………………………………………………………..
कछुए जैसी चाल का
कुंठाओं के जाल का, मत बनना भूगोल तू।

थर-थर कंपित खाल का
थप्पड़ खाते गाल का, मत बनना भूगोल तू।

कायर जैसे हाल का
किसी सूखते ताल का, मत बनना भूगोल तू।

छोटे-बड़े दलाल का
या याचक के भाल का, मत बनना भूगोल तू।

केवल रोटी-दाल का
किसी पराये माल का, मत बनना भूगोल तू।

उत्तरहीन सवाल का
पश्चाताप-मलाल का, मत बनना भूगोल तू।
+रमेशराज

|| जनक छन्द में तेवरी || —4.
…………………………………………………………….
अपना ले तू आग को
आज क्रान्ति के राग को, जीवन हो तब ही सफल।

अपने को पहचान तू
जी अब सीना तान कर, डर के भीतर से निकल।

जग रोशन करना तुझे
रंग यही भरना तुझे, सिर्फ सत्य की राह चल।

तू बादल है सोच ले
मरु को जल है सोच ले, छाये दुःख का खोज हल।
+रमेशराज

|| जनक छन्द में तेवरी || —5.
……………………………………………..
क्या घबराना धूप से
ताप-भरे लू-रूप से, आगे सुख की झील है।

दुःख ने घेरा, क्यों डरें
घना अँधेरा, क्यों डरें, हिम्मत है-कंदील है।

भले पाँव में घाव हैं
कदम नहीं रुक पायँगे, क्या कर लेगी कील है।

खुशियों के अध्याय को
तरसेगा सच न्याय को, ये छल की तहसील है।

है बस्ती इन्सान की
हर कोई लेकिन यहाँ बाज गिद्ध वक चील है।

पीड़ा का उपचार कर
‘भाग लिखें की’ आज सुन, चलनी नहीं दलील है।
+रमेशराज

|| जनक छन्द में तेवरी || —6.
………………………………………………………
दूर सूखों का गाँव है
जीवन नंगे पाँव है, टीस-चुभन का है सफर।

सिसकन-सुबकन से भरे
अविरल क्रन्दन से भरे, घायल मन का है सफर।

मरे-मरे से रंग में
बोझिल हुई उमंग में, दर्द-तपन का है सफर।

इस संक्रामक घाव की
बातें कर बदलाव की, क्यों क्रन्दन का है सफर।
+रमेशराज

|| जनक छन्द में तेवरी || —7.
……………………………………………………
जीवन कटी पतंग रे
हुई व्यवस्था भंग रे, अब तो मुट्ठी तान तू।

दुःख ही तेरे संग रे
स्याह हुआ हर रंग रे, अब तो मुट्ठी तान तू।

कुचलें तुझे दबंग रे
बन मत और अपंग रे, अब तो मुट्ठी तान तू।

गायब खुशी-तरंग रे
सब कुछ है बेढंग रे, अब तो मुट्ठी तान तू।

लड़नी तुझको जंग रे
बजा क्रान्ति की चंग रे, अब तो मुट्ठी तान तू।
+रमेशराज

|| जनक छन्द में तेवरी || —8.
……………………………………………………
उधर वही तर माल है
मस्ती और धमाल है, सोता भूखे पेट तू।

महँगी चीनी-दाल है
घर अभाव का जाल है, सोता भूखे पेट तू।

आँखों में ग़म की नमी
सुख का पड़ा अकाल है, सोता भूखे पेट तू।

चुप मत बैठ विरोध कर
सिस्टम करे हलाल है, सोता भूखे पेट तू।
+रमेशराज

|| जनक छन्द में तेवरी || —9.
……………………………………………….
पापी के सर ताज रे
अब गुण्डों का राज रे, बड़े बुरे हालात हैं।

कैसा मिला स्वराज रे
सब बन बैठे बाज रे, बड़े बुरे हालात हैं।

गिरे बजट की गाज रे
पीडि़त बहुत समाज रे, बड़े बुरे हालात हैं।

ऐसे ब्लाउज आज रे
जिनमें बटन न काज रे, बड़े बुरे हालात हैं।

नेता खोयी लाज रे
सब को छलता आज रे, बड़े बुरे हालात हैं।

लेपे चन्दन आज रे
जिनके तन में खाज रे, बड़े बुरे हालात हैं।
+रमेशराज

|| जनक छन्द में तेवरी || —10.
…………………………………………………………..
नैतिकता की देह पर
निर्लजता का बौर है, अजब सभ्य ये दौर है।

गिरगिट जैसे रंग में
अब नेता हर ठौर है, अजब सभ्य ये दौर है।

जो गर्दभ-सा रैंकता
वो गायक सिरमौर है, अजब सभ्य ये दौर है।

पश्चिम की अश्लीलता
निश्चित आनी और है, अजब सभ्य ये दौर है।
+रमेशराज

|| जनक छन्द में तेवरी || —11.
……………………………………………………….
तम में आये नूर को
प्रेम-भरे दस्तूर को, चलो बचायें आज फिर ।

विधवा खुशियों के लिये
चूनर लहँगा चूडि़याँ, मेंहदी लायें आज फिर ।

घर सुख का जर्जर हुआ
चल कलई से पोत कर रंग जमायें आज फिर।

जली बहू की चीख की
जिस नम्बर से कॉल है, उसे मिलायें आज फिर।

चर्चा हो फिर क्रान्ति पै
मन पर छायी क्लान्ति पै, करें सभाएँ आज फिर।

जनक छन्द में तेवरी
भरकर इसमें आग-सी, चलो सुनायें आज फिर।
+रमेशराज

|| जनक छन्द में तेवरी || —12.
………………………………………………..
हारे-हारे लोग हैं,
सुबह यहाँ पर शाम है, दुःख-पीड़ा अब आम है।

सब में भरी उदासियाँ
मन भीतर कुहराम है, दुःख-पीड़ा अब आम है।

लिख विरोध की तेवरी
तभी बनेगा काम है, दुःख-पीड़ा अब आम है।
+रमेशराज

|| जनक छन्द में तेवरी || —13.
…………………………………………………………
अरसे से बीमार को,
मन पर चढ़े बुखार को, पैरासीटामॉल हो।

फिर दहेज के राग ने
बहू जलायी आग ने, अब उसको बरनाॅल हो।

छद्मरूपता यूँ बढ़ी
छोटी-सी दूकान भी, तनती जैसे मॉल हो।

तू चाहे क्यों प्यार में
स्वागत या सत्कार में मीठ-मीठा ऑल हो।

मरु में भी ऐसा लगा
करे शीत ज्यों रतजगा, आया स्नोफॉल हो।

वो इतना बेशर्म था
यूँ खेला जज्बात से, जैसे कोई बॉल हो।
+रमेशराज

|| जनक छन्द में तेवरी || —14.
……………………………………………………..
तंग हाल था वो भले
बस सवाल था वो भले, पर भीतर से आग था।

कड़वा-कड़वा अब मिला
बेहद तीखा अब मिला, जिसमें मीठा राग था।

ऐसे भी क्षण हम जिये
गुणा सुखों में हम किये, किन्तु गुणनफल भाग था।

है कोई इन्सान वह
यह हमने समझा मगर, पता चला वह नाग था।
+रमेशराज

|| जनक छन्द में तेवरी || —15.
…………………………………………………..
इसमें बह्र तलाश मत
इसे ग़ज़ल मत बोलियो, जनक छंद में तेवरी।

इसमें किस्से क्रान्ति के
चुम्बन नहीं टटोलियो, जनक छन्द में तेवरी।

सिर्फ काफिया देखकर
यहाँ कुमति मत घोलियो, जनक छंद में तेवरी।

रुक्न और अर्कान से
मात्राएँ मत तोलियो, जनक छन्द में तेवरी।

यह रसराज विरोध है
नहीं टिकेगा पोलियो, जनक छंद में तेवरी।

इसमें तेवर आग के
यहाँ न खुश-खुश डोलियो, जनक छंद में तेवरी।
+रमेशराज

|| जनक छन्द में तेवरी || —16.
………………………………………….
रति की रक्षा हेतु नित
लिये विरति के भाव है, जनक छंद में तेवरी।

करे निबल से प्यार ये
खल को दे नित घाव है, जनक छंद में तेवरी।

इसमें नित आक्रोश है
दुष्टों पर पथराव है, जनक छंद में तेवरी।

अगर बदलता कथ्य तो
शिल्प गहे बदलाव है, जनक छंद में तेवरी।

शे’र नहीं रनिवास का
तेवर-भरा रचाव है, जनक छंद में तेवरी।
+रमेशराज

|| जनक छन्द में तेवरी || —17.
……………………………………………………
बढ़ते अत्याचार से
चंगेजी तलवार से, अब भारत आज़ाद हो।

पनपे हाहाकार से
फैले भ्रष्टाचार से, अब भारत आज़ाद हो।

ब्लेड चलाते हाथ हैं,
पापी पॉकेटमार से, अब भारत आज़ाद हो।

कहते नेताजी जिसे
जन के दावेदार से, अब भारत आज़ाद हो।

जिसे विदेशी भा रहे
ऐसे हर गद्दार से अब भारत आज़ाद हो।
+रमेशराज

|| जनक छन्द में तेवरी || —18.
………………………………………………………..
आज भले ही घाव हैं
मन में दुःख के भाव हैं, बदलेंगे तकदीर को।

बहुत दासता झेल ली
अब आज़ादी चाहिए, तोड़ेंगे जंजीर को।

अजब व्यवस्था आपकी
जल का छल चहुँ ओर है, मछली तरसे नीर को।

संत वेश में बन्धु तुम
रहे आजकल खूब हो, कर बदनाम कबीर को।

जिनसे खुद का घर दुःखी
उनके दावे देखिए ‘हरें जगत की पीर को’।
+रमेशराज

|| जनक छन्द में तेवरी || —19.
…………………………………………………………..
पापी के सम्मान में,
हर खल के गुणगान में, हमसे आगे कौन है!

परनिन्दा में हम जियें
झूठ-भरे व्याख्यान में, हमसे आगे कौन है!

दंगे और फ़साद की
अफवाहों की तान में, हमसे आगे कौन है!

घपलों में अव्वल बने
घोटालों के ज्ञान में, हमसे आगे कौन है!

बेचें रोज जमीर को
खल जैसी पहचान में, हमसे आगे कौन है!

अमरीका के खास हम
पूँजीवाद उठान में, हमसे आगे कौन है!

लेकर नाम कबीर का
अवनति के उत्थान में, हमसे आगे कौन है!

ब्लू फिल्मों को देखकर
आज रेप-अभियान में, हमसे आगे कौन है!

हम सबसे पीछे खड़े
बोल रहे मैदान में हमसे आगे कौन है!

भीख माँगकर विश्व से
कहें-‘बताओ दान में हमसे आगे कौन है’!
+रमेशराज
————————————————
+रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001

Language: Hindi
287 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
भगतसिंह के ख़्वाब
भगतसिंह के ख़्वाब
Shekhar Chandra Mitra
जन अधिनायक ! मंगल दायक! भारत देश सहायक है।
जन अधिनायक ! मंगल दायक! भारत देश सहायक है।
Neelam Sharma
*छलने को तैयार है, छलिया यह संसार (कुंडलिया)*
*छलने को तैयार है, छलिया यह संसार (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
जगमगाती चाँदनी है इस शहर में
जगमगाती चाँदनी है इस शहर में
Dr Archana Gupta
लहजा बदल गया
लहजा बदल गया
Dalveer Singh
गणतंत्र दिवस की बधाई।।
गणतंत्र दिवस की बधाई।।
Rajni kapoor
आप सभी को रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं
आप सभी को रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएं
लोकेश शर्मा 'अवस्थी'
Jay shri ram
Jay shri ram
Saifganj_shorts_me
,,,,,,
,,,,,,
शेखर सिंह
23/48.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/48.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
दिल के इक कोने में तुम्हारी यादों को महफूज रक्खा है।
दिल के इक कोने में तुम्हारी यादों को महफूज रक्खा है।
शिव प्रताप लोधी
"वक्त-वक्त की बात"
Dr. Kishan tandon kranti
आज हम जा रहे थे, और वह आ रही थी।
आज हम जा रहे थे, और वह आ रही थी।
SPK Sachin Lodhi
कितने इनके दामन दागी, कहते खुद को साफ।
कितने इनके दामन दागी, कहते खुद को साफ।
डॉ.सीमा अग्रवाल
आओ ऐसा एक भारत बनाएं
आओ ऐसा एक भारत बनाएं
नेताम आर सी
कल हमारे साथ जो थे
कल हमारे साथ जो थे
ruby kumari
मैं तो महज वक्त हूँ
मैं तो महज वक्त हूँ
VINOD CHAUHAN
इंतजार बाकी है
इंतजार बाकी है
शिवम राव मणि
गरिमामय प्रतिफल
गरिमामय प्रतिफल
Shyam Sundar Subramanian
मेरी आंखों में कोई
मेरी आंखों में कोई
Dr fauzia Naseem shad
#एक_कविता
#एक_कविता
*Author प्रणय प्रभात*
ढूंढ रहा है अध्यापक अपना वो अस्तित्व आजकल
ढूंढ रहा है अध्यापक अपना वो अस्तित्व आजकल
कृष्ण मलिक अम्बाला
मित्रो नमस्कार!
मित्रो नमस्कार!
अटल मुरादाबादी, ओज व व्यंग कवि
संत पुरुष रहते सदा राग-द्वेष से दूर।
संत पुरुष रहते सदा राग-द्वेष से दूर।
महेश चन्द्र त्रिपाठी
बेटी
बेटी
Neeraj Agarwal
शबे दर्द जाती नही।
शबे दर्द जाती नही।
Taj Mohammad
मोहब्बत
मोहब्बत
Dinesh Kumar Gangwar
अश्लील वीडियो बनाकर नाम कमाने की कृत्य करने वाली बेटियों, सा
अश्लील वीडियो बनाकर नाम कमाने की कृत्य करने वाली बेटियों, सा
Anand Kumar
मास्टरजी ज्ञानों का दाता
मास्टरजी ज्ञानों का दाता
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
Loading...