डर के आगे जीत है !
नजदीकियाँ किसी की चुभने लगे तुम्हें जब
फासले बढ़ा कर देखो ,शायद प्यार हो जाए !
ख़ुशी पाने को दांव पर -जब लग जाये खुशी ही तब
दुखों को प्रेरणा बना लो,शायद हार की हार हो जाये I
वृक्ष के छाँव में भी लगने लगे ,जब उष्मा भास्कर की
चांदनी की शीतलता लगे – जब दहक ग्रीष्म ऋतु वाली
जल के जोश की अग्नि में ढून्ढ लो सुकून धराधर सी
ठण्ड के भाप को लो भांप और पूजो सांझ की लाली !
सागर की गहराई से भयभीत हो जब तुम हो निशब्द
डूब कर अथाह जल में मोती कर के तो देखो हासिल,
महल की वीराने से डरते हो कि अन्धेरा डस लेगा तुम्हें किसी दिन
तमस के स्याह रंग को चहेते रंगों में कर लो तब शामिल I
डरते हो जिससे तुम ,तुम्हारी रूह भी कांपती भयभीत है-
डर पर विजय की ठान भी लो अब, डर के आगे ही जीत है !