* रामचरितमानस का पाठ*
* संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ : दैनिक समीक्षा*
7 अप्रैल 2023 शुक्रवार
प्रातः 10:00 बजे से 11:00 बजे तक आज कथा का तीसरा दिन है।
बालकांड दोहा संख्या 37 से दोहा संख्या 76 तक
राम महात्म्य विषयक सती जी का भ्रम, पार्वती जी की तपस्या
रामचरितमानस श्रद्धा और विश्वास के बल पर ही पढ़ा जा सकता है अन्यथा तो यह कठिन ही लगेगा ।
दोहा 38 में तुलसीदास जी ने जीवन में श्रद्धा के संबल की बात विशेष रूप से कहीं है । उनका कथन है :-
जे श्रद्धा संबल रहित, नहिं संतन्ह कर साथ ।
तिन्ह कहुॅं मानस अगम अति, जिन्हें न प्रिय रघुनाथ
अर्थात श्रद्धा का संबल और संत प्रवृति का साथ मिलते हुए जब राम की कथा कहने का उत्साह होता है तभी रामचरितमानस सुगम बन जाती है ।
प्रायः कथा सुनते समय लोगों को नींद आ जाती है । इस पर भी बड़ा सुंदर कटाक्ष किया गया है :-
जौं करि कष्ट जाइ पुनि कोई, जातहिं नींद जुड़ाई होई
अर्थात कथा में पहुंचने के बाद भी व्यक्ति नींद की चपेट में ही आ जाता है।
रामचरितमानस की कथा ही इतनी निर्मल है कि उसमें गोता लगाकर कवि तुलसीदास लिखते हैं कि उनकी बुद्धि विमल हो गई है :-
सो मानस मानस चख चाही, भइ कवि बुद्धि विमल अवगाही
तात्पर्य यह है कि रामचरितमानस के पाठ से व्यक्ति के मन की निर्मलता प्रखर होती है।
तीर्थराज प्रयाग इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि वहां निरंतर स्नान ही नहीं अपितु भगवान के गुणों की कथा चलती रहती हैं। विद्वान संत वहां पधारते रहते हैं तथा सबको अपने संशयों के निवारण के अवसर मिल जाते हैं। ऐसा ही एक अवसर भरद्वाज मुनि को तब मिला, जब याज्ञवल्क्य मुनि प्रयागराज में स्नान करने के लिए आए और तब भरद्वाज मुनि ने उनसे अपना प्रश्न पूछा:-
नाथ एक संशय बड़ मोरे, करगत वेदतत्व सबु तोरे
(दोहा वर्ग 44)
वह संशय भरद्वाज मुनि का यह था कि जो राम दशरथ-पुत्र हैं, क्या उन्हीं राम को शंकर जी जपते हैं :-
प्रभु सोइ राम कि अपर कोउ, जाहि जपत त्रिपुरारी
(दोहा संख्या 46)
यह प्रश्न इतना कठिन है कि जब याज्ञवल्क्य मुनि ने शंकर-पार्वती की एक कथा भारद्वाज मुनि को सुनाई,तो इस कथा में भी यह वर्णन आता है कि सती के मन में भी यह प्रश्न उठा कि क्या सर्वव्यापक अजन्मा ईश्वर देहधारी मनुष्य भी हो सकता है ? रामचरितमानस में लिखा है :-
ब्रह्म जो व्यापक विरज अज, अकल अनीह अभेद।
सो कि देह धरि होइ नर, जाहि न जानत वेद।।
(दोहा संख्या 50)
जिसे वेद भी नहीं जान पाते, क्या वह देहधारी मनुष्य होना संभव है?
कथा में शंकर जी ने सती को समझाया कि सर्वव्यापक राम ही दशरथ-पुत्र राम हैं । उन्होंने कहा:-
सोइ रामु व्यापक ब्रह्म भवन, निकाय पति माया धनी।
अवतरेउ अपने भगत-हित, निजतंत्र नित रघुकुलमनी (छंद दोहा वर्ग 50)
शिवजी ने भले ही कितना भी समझा दिया लेकिन सती के मन में विश्वास नहीं जमा और तब तुलसीदास जी ने संसार में कालक्रम को देखते हुए एक ऐसी बात कह दी जो पत्थर की लकीर बन गई। उन्होंने कहा कि कितना भी तर्क कर लो लेकिन होनी बलवान होती है और जो होता है वह होकर ही रहता है । तुलसी लिखते हैं :-
होइहि सोइ जो राम रचि राखा, को करि तर्क बढ़ावै साखा
(सोरठा वर्ग संख्या 51)
सती और शिव की कथा अत्यंत प्रसिद्ध है लेकिन इस कथा में कुछ ऐसे उपदेश तथा नीतिगत बातें तुलसीदास जी ने जोड़ी हैं ,जिनके कारण यह अत्यंत उपयोगी तथा दैनिक व्यवहार में अमल के योग्य बन गई है । कुछ ऐसी पंक्तियां देखिए:-
जदपि मित्र प्रभु पितु गुरु गेहा, जाइअ बिनु बोलेहु न संदेहा
(दोहा वर्ग संख्या 61)
अर्थात बिना बुलाए मित्र,पिता और गुरु के घर भी नहीं जाना चाहिए।
एक अन्य स्थान पर तुलसीदास जी ने इस बात को समझाया है कि अगर व्यक्ति महत्वपूर्ण है तो उसके दोष भी ढक जाते हैं । इस संबंध में उन्होंने बहती हुई नदी, सूर्यदेव तथा अग्नि के उदाहरण दिए हैं। उन्होंने लिखा है:-
समरथ कहुॅं नहिं दोषु गोसाईं (दोहा वर्ग संख्या 68)
पार्वती जी का एक नाम अपर्णा भी है । यह नाम कैसे पड़ा, इसका उल्लेख दोहा वर्ग संख्या 73 में आता है । पार्वती जी ने जब बड़ा भारी तप किया तब एक समय ऐसा भी आया जब उन्होंने सूखे पत्ते अर्थात पर्ण भी खाना छोड़ दिया । तब पर्ण-रहित जीवन बिताने के कारण उनका नाम अपर्णा प्रसिद्ध हुआ :-
पुनि परिहरे सुखानेउ परना, उमहि नामु तब भयउ अपरना। (दोहा संख्या वर्ग 73)
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प्रस्तुति :रवि प्रकाश (प्रबंधक)
राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय (टैगोर स्कूल), पीपल टोला, निकट मिस्टन गंज, रामपुर, उत्तर प्रदेश
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