टुकड़ा दर्द का
हम उस मुकाम पर नहीं होते,
अजनबी रास्ते जहाँ नहीं होते।
हर टुकड़ा दर्द का कहता है,
टूटे आईनों की जुबां नहीं होते।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
हम उस मुकाम पर नहीं होते,
अजनबी रास्ते जहाँ नहीं होते।
हर टुकड़ा दर्द का कहता है,
टूटे आईनों की जुबां नहीं होते।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति