जीवन-रथ के सारथि_पिता
जीवन-रथ के सारथि_पिता
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सारथि जीवन-रथ के ,
देवता तुल्य पिता हैं जग में।
अन्नदाता भयत्राता पिता ही हैं ,
सृजनकर्ता भी वही जग में।
माता को यदि तुम,सारे तीर्थ मानों,
तो उन मंदिरों में विराजित,ईश्वर भी पिता जानों।
नभ से भी ऊँचा कद पिता का है ,
विद्यादाता विघ्नहर्ता पिता ही है ।
पितृ ऋण जो,हम सब पर है उनका ,
पर पुत्र वो कर्ज, नहीं चुका सकता।
माता को यदि तुम,सारे तीर्थ मानों,
तो उन मंदिरों में विराजित,ईश्वर भी पिता जानों।
अन्तर्मन में झाँको अपने ,
व्यथा भी उनके पहचानो।
माता-पिता ही प्रथम देव है जग में ,
संग-संग उनके चलना तो जानो।
यदि मन से वे प्रसन्न होते ,
तो दुखों के सारे बादल हैं छंटते।
माता को यदि तुम,सारे तीर्थ मानों,
तो उन मंदिरों में विराजित,ईश्वर भी पिता जानों।
मौलिक एवं स्वरचित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०४ /०५ /२०२२