$ तरुवर-सम जीवन
#तरुवर-सम जीवन
पल्लव पुष्पों से सजे धरा, सुरभियुक्त आँगन होगा।
रंगों से नयनों का संगम, हृदय तलक पावन होगा।
श्वास-श्वास में मधुबन घुलकर, मन को अति हर्षाएगा;
रिश्तों से शीतलता का फिर, मनहर आलिंगन होगा।
तरुवर सम जीवन हम करके, संस्कारों का पान करें।
देना सीखें लेना भूलें, मानव हैं तो ध्यान करें।
चार दिशाओं की हरियाली, स्वर्ग धरा दर्शाएगी;
रोग दोष से बचना है तो, भुला स्वार्थ को आन करें।
जड़चेतन की समझ करें हम, जीवन हितकारी होगा।
भौतिकता में रहे भागते, हरपल फिर भारी होगा।
बंज़र भू सम मन हम लेकर, चैन नहीं पल पाएंगे;
चैन बिना ये जीवन प्रीतम, दुखों की पारी होगा।
पेड़ लगाओ रोग भगाओ, सीख लीजिये प्यारी-सी।
डेंगू कोरोना की समझो, रीत लगे फिर हारी-सी।
स्वच्छ निरोगी काया होगी, सावन खुद हो जाएंगे;
जीत प्रेम की हँसके होगी, कण-कण में फिर जारी-सी।
मानव हैं हम प्रकृति प्रेम को, हँसके नित-नित समझेंगे।
नहीं समझ में आया कुछ तो, बने निशाचर घूमेंगे।
निशिवासर हमको हँसना है, स्नेह-धरा का हम जानें;
सर्व-धर्म को नूतन करके, आनंद घना चूमेंगे।
पैसे से तो वस्तु मिलेगी, संस्कारों से ख़ुशियाँ हों।
मैल बहाया हमने फिर तो, दूषित जग की नदियाँ हों।
जल पानी सम हो जायेगा, बीमारी हम पायेंगे;
रोग लिए पैसे फिर ऐसे, बीती जैसे सदियाँ हों।
#आर.एस.’प्रीतम’
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