जिज्ञासा
शीर्षक – जिज्ञासा
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सच और सही तो नियम जिज्ञासा है।
हम तुम रब के बनाए रंगमंच चित्र हैं।
मानव तो हम सच कहां जिज्ञासा हैं।
बस जिंदगी गुज़र बसर करते हैं
एक जिज्ञासा धन शोहरत के साथ,
हम ईमान की कहां सोचते हैं।
बस दूसरों में कमी हम निकालते हैं।
ईश्वर भक्ति और जिज्ञासा के सच,
शक्ति श्रृद्धा स्वार्थ हम रखते हैं।
किस्मत और भाग्य तो जीवन
सच जिज्ञासा पहले ही लिखी हैं।
सच तो यही आज हमारी सोच होती हैं।
जिज्ञासा ही मन भावों में होती हैं।
हम कल के साथ जीते रहते हैं।
सच हम जीवन जिंदगी को जीतें हैं।
हां सच आज भी हम जिज्ञासा रखते हैं।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र