जान है तो जहान है…. (“कोरोना” विषय पर काव्य प्रतियोगिता हेतु)
जान है तो जहान है….
न सँभले हैं हालात अभी और कुछ दिन घर में रहो
ख्याल रखो अपना-अपनों का न बीच शहर में रहो
संयम से रह किसी तरह ये मुश्किल दिन बिता लो
रहो सुकून से घर में दो रोटी सुकून की खा लो
प्राण हथेली पर ले अपने निकलो न जबरन बाहर
एकांतवास करो निज घर में आई विपद् को टालो
मंडरा रहा है काल देखो दुनिया ही समूची लीलने
ए परिंदों ! इल्तिज़ा ये तुमसे तुम भी शज़र में रहो
जीविका हित दूर रह प्राण कलपते रहे जिनके लिए
आज नसीब से पल मिले ये जी लो इन्हें उनके लिए
जान है तो जहान है वरना जग ही सारा मसान है
रहें मिल सब घर में अपने हितकर यही सबके लिए
गिले-शिकवे रह न जाएँ पल ऐसे फिर आएँ न आएँ
अपने रहें नज़रों में तुम्हारी तुम उनकी नज़र में रहो
जान के घाटे से बेहतर अर्थ-व्यापार में घाटा सह लो
जीभर सुनो व्यथा अपनों की जीभर अपनी कह लो
कठिन घड़ी है कठिन चुनौती करो सामना हिम्मत से
कुदरत की सौगात समझ नेह-पिंजर में अपने रह लो
न जोश-ए-वहशत में रहो न ग़म-ए-दहर में रहो
ए गज़ल ! तुम भी कुछ दिन बंद अपनी बहर में रहो
-सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद (उ.प्र.)