ज़िन्दगी…!
ज़िन्दगी के इस सफर में
हर दिन एक नया मोड़ आया
अपनों ने छोड़ा साथ हमारा
तो गैरों ने गले लगाया
जीवन की इस पहेली को
सहज-सहज हमने सुलझाया!
आगे बढ़ने की ललक में
अपनों तक से बिछड़ जाते है
गाँव से शहर तक की दूरी भी अब
कुछ घंटे में तय कर जाते है,
जीवन की इस पहेली को भला
लोग कैसे कैसे सुलझाते है!
सुबह के निकले मुसाफिर
सांझ ढले लौटकर आते हैं
भाग दौर भरी इस ज़िन्दगी में
फिर सुकून की नींद भी कहा पाते हैं,
पर तय है ये,
हर संघर्षी अपने जीवन में
अपनी एक अलग पहचान बनाते हैं!
गरिमा प्रसाद🥀