जब तक हो तन में प्राण
जब तक हो तन में प्राण
जुबाँ पर हो एक तेरा नाम
गिरने जो लगूं तो संभाल लेना
रोने जो लगूं तो हँसा देना
किसी को सिसकते देखूं तों
चल पडूँ राह इंसानियत की
दिल में तेरी इबादत का जूनून
होठों पर तेरा नाम हर पल
जहां भी देखूं बस तू ही तू हो
तेरे बन्दों में , इस कायनात के हर ज़र्रे में तू
तेरी इस पाकीजा निगाह का करम मुझ पर जो हो जाए
जीते जी मुझे जन्नत नसीब हो जाए
तू इस जमीं का मालिक , उस जन्नत का भी
जिस पर हो तेरा करम , उसका बेड़ा पार हो जाए
किसी की झोपड़ी में . किसी के आलीशान महल में तू
दिलों को करता है रोशन , वो खैरख्वाह है तू
लिखता है नसीब , बगैर कलम स्याही के तू
इंसानियत की राह जो चले , उनके साथ हर पल है तू
जब तक हो तन में प्राण
जुबाँ पर हो एक तेरा नाम ||
अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”