छंद का आनंद घनाक्षरी छंद
छंद का आनंद घनाक्षरी छंद ।
घनाक्षरी छंद
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हिंदी साहित्य के इतिहास पर दृष्टि डालें तो भक्ति काल से लेकर आधुनिक काल तक घनाक्षरी छंद लिखने प्रचलन अबाध रूप से चला आ रहा है। तुलसी दास की कवितावली एवं हनुमान बाहुक में घनाक्षरी छंदों के बढ़िया प्रयोग मिलते हैं। इनके ही आसपास केशवदास, भिखारी दास,गंग आदि कवियों ने भी घनाक्षरी लिखें हैं, ये कवि लक्षण ग्रंथों के रचने वाले थे अतः इन्होंने घनाक्षरी में विभिन्न अलंकारों के सफल प्रयोग किये हैं। रीतिकाल में सेनापति, पद्माकर,भूषण आदि ने अपने अपने ढंग से इसकी छटा बिखेरी है ।ऋतुवर्णन सेनापति का,तो गंगा लहरी पदमाकर की अपना विशेष स्थान बनाये है ।भूषण ने वीर रस में छत्रसाल एवं शिवाजी के यश का गान किया जो राष्ट्रीय काव्यधारा में आता है। ये सभी अलंकार प्रिय रहे ।घनाक्षरी के मामले में बाबू जगन्नाथ दास रत्नाकर मील का पत्थर साबित होते हैं, उनका उद्धवशतक बहुत लोकप्रिय हुआ विस्तार भय से किसी के उदाहरण नहीं दे रहा हूँ। दिनकर जी ने कुरुक्षेत्र में एक सर्ग इसी छंद में लिखा है तो कहीं कहीं मैथिलीशरण गुप्त ने भी इसे अपनाया है।
घनाक्षरी और सवैया दोनों ब्रज की भूमि में ही अधिक फले फूले हैं बोधा, ग्वाल,द्विज,नवनीत, बेनी,आदि सभी घनाक्षरी के अच्छे कवि रहे हैं। हिंदी की वाचिक परंपरा में याने कवि सम्मेलन मंच पर भी घनाक्षरी का पर्याप्त सम्मान हुआ है। मैंने जिनके साथ मंच साझा किए और सुना उनमें आचार्य ब्रजेन्द्र अवस्थी, बाबा निर्भय हाथरसी, पं. सत्यनारायण सत्तन, श्री काकाहाथरसी, श्री उदय प्रताप सिंह, डाॅ. विष्णु विराट, डाॅ. हरिओम पंवार, श्री जगदीश सोलंकी, श्री अल्हड़ बीकानेरी, श्री ओमप्रकाश आदित्य, श्री विनीत चैहान, श्री वेदव्रत वाजपेयी, श्री ओम पाल सिंह निडर आदि इनमें अधिकांश वे कवि हैं जो अन्य विधाओं के चर्चित कवि रहे और जिन्होंने मंच पर सुन्दर घनाक्षरी छंद भी पढ़े हैं। पठंत ऐसी की हर पंक्ति पर तालियां बजतीं अंतिम पंक्ति में तो पूरा महोत्सव बन जाता। अल्हड़ जी ने शतक से भी अधिक घनाक्षरी सुन्दर भाव में लिखे। श्री उदय प्रताप सिंह जी ने, रामकथा के साथ चाँदनी उतारी, आदित्य जी के विशिष्ट प्रयोग मंच पर और प्रकाशन में भी देखने मिले। मेरे प्रिय पंडित प्रवीण शुक्ल,ने इस परम्परा में विविध सुन्दर प्रयोग किये हैं। हमारे गुरुकुल में अरुण दीक्षित अनभिज्ञ, सुरेन्द्र यादवेंद्र, शशिकांत यादव, राहुल राय, पवन पांडेय, गौरी शंकर धाकड़, कैलाश जोशी पर्वत, राजेन्द्र चैहान, विवेक सक्सेना,विजय बागरी,कैलाश सोनी सार्थक,अखिलेश प्रजापति, अखिलेश त्रिपाठी केतन, प्रतीक तिवारी,प्रीतिमा पुलक आदि ने मनहरण, रूप, जलहरण, विजया, कृपाण एवं देव घनाक्षरी के सुन्दर सराहनीय छंद समस्या पूर्ति में लिखे हैं। बाद में आने वाले अन्य अनेक छंदकार नियमित छंद सृजन कर रहे हैं। केवल मनहरण घनाक्षरी को ही घनाक्षरी न माना जाये दूसरे प्रकारों का भी सृजन होना चाहिये।
भागवत और रामकथा के प्रवचनों में घनाक्षरी छंद को सदा से खूब सम्मान मिला नरोत्तमदास जी सुदामा चरित्र लिखकर अमर हो गये। यह परम्परा चलती रहे इसी भावना के साथ अंत में घनाक्षरी के विधान पर थोड़ी चर्चा करना जरूरी समझता हूँ, ताकि नये लिखने वालों को आसानी हो सके।
घनाक्षरी विधान-
घनाक्षरी छंद 30 वर्ण से लेकर 33 वर्ण तक के होते हैं 31 वर्ण के घनाक्षरी को मनहरण घनाक्षरी कहते हैं। कुछ लोग कवित्त या मनहरण दंडक भी कहते हैं प्रायः अपने काव्य में सभी कवियों ने इसी घनाक्षरी का प्रयोग किया है। 31 वर्ण के दो घनाक्षरी और हैं-
1 जनहरण घनाक्षरी- इसमें 30 वर्ण लघु होना चाहिए अंत में 1 वर्ण गुरू होता है।
2 कलाधर घनाक्षरी यह भी 31 वर्ण का घनाक्षरी है,इसमें गुरू लघु के 15 युग्म होते हैं, अंत में 1 गुरू होता है।
घनाक्षरी में 4 समतुकांत होना जरूरी है। वैसे तो 8, 8 =16,ऊपर 8 ,7 =15 नीचे की लाइन में यति का विधान है पर अनेक कवियों ने अपनी सुविधानुसार 16-15 की यति पर छंद लिखे हैं।
देव घनाक्षरी – यह 33 वर्ण का घनाक्षरी है। इसमें 8, 8, 8़ 9 =33 पर यति होती है, अंत में तीन वर्ण लघु होना चाहिए, अगर अंतिम शब्द युग्म रूप में आता है तो छंद की सुंदरता बढ़ जाती है। जसवन्त सिंह का प्रसिद्ध छंद अनेक किताबों में है-
झिल्ली झनकारें पिक चातक पुकारें
सूर घनाक्षरी- 8, 8, 8 ,6 =30
शेष घनाक्षरी 32 वर्ण के होते हैं और सबकी यति 8,8पर लगती है। जलहरण, रूपघनाक्षरी, कृपाण, विजया, हरिहरण,मदन,हरण, डमरू, सिंहावलोकन आदि सभी घनाक्षरी छंदों का सम्मान करते हुए मैंने इन्हें लिखने की कोशिश की है। समय समय पर फेसबुक पर पोस्ट भी किये हैं। यह छंद मुझे बहुत प्रिय है अतः इसे लिखने वाले हर कवि को हृदय से नमन प्रणाम करता हूँ। गजल के, दोहों के अनेक संकलन प्रकाशित हुए हैं, पर घनाक्षरी का कोई संकलन प्रकाशित नहीं हुआ, शायद अब कोई करे इस आशा विश्वास के साथ सभी को प्रणाम।
अपनी प्रतिक्रिया, सम्मति, शुभकामना,एवं आशीर्वाद अवश्य ही दें। शुभम् मंगलम्।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
18/12/23