चोटियों को मापती हैं बेटियाँ अब गगन
2122 2122 212
चोटियों को मापती हैं बेटियाँ
अब गगन बन बोलती हैं बेटियाँ।1
हो रहे रोशन अभी घर देख तो
रूढ़ियों को तोड़तीं है बेटियाँ।2
अब नहीं काँटे चुभेंगे पाँव में
रास्तों को मोड़ती हैं बेटियाँ।3
बाँटते- बँटते जहाँ सब लोग हैं
दो घरों को जोड़ती हैं बेटियाँ।4
फूल की ख्वाहिश पिरोये तू भले
शूल भरदम लोढ़ती हैं बेटियाँ।5
साफ दामन ही रहा तेरा सदा
कालिमा क्यूँ ओढ़ती हैं बेटियाँ?6
बन धरा जो आसमां को ढ़ो रहीं
सोच ले क्या सोचती हैं बेटियाँ।7
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