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18 May 2024 · 1 min read

ईरादा

साहिल पर रुककर तूफान का नज़ारा कौन करता है,
हम बेफ़िक्र है, भरोसा टूटने का गम नही,
हार कर सब कुछ फिर से ‘देने’ का ईरादा कौन करता है ।
अब सब्र का इम्तिहाँ है,
मरने तक तो जान है,
होके मगरूर वक्त से पन्जा लड़ाने का ईरादा कौन करता है ।
एक अजब सा आलम है,
अब्र तक फैला सुकून है ,
सीख ली जादुगरी जीने की जिसने,
होके बेपरवाह ,मरने का ईरादा कौन करता है ।।

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