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17 Feb 2024 · 1 min read

कविता

गरीबी
गरीबी का आलम इस कदर बढ़ रहा है
कि खौफनाक मंजर सबको जकढ रहा है
आदमी हीआदमी के खून का प्यासा
चंद रुपयों की खातिर झूठ गढ़ रहा है
नफरतों की चादर में रिश्ते हो रहे गुम
प्रेम छोड़ पैसों की ओर जुड़ रहा है
इज्जत और सम्मान दामों में खेलते हैं
हैवानियत का नशा सर पर चढ़ रहा है
बचपन अनाथ बेसहरा प्यार को तरसता
दोष किसका माँ का आंचल सिकुढ रहा है
भाई बहिन मातापिता गुरू शिष्य के नाते
लोभ और मायामें सब उड़ रहा है

नमिता शर्मा

Language: Hindi
41 Views
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