*चेतना-परक कुछ दोहे*
चेतना-परक कुछ दोहे
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1)
अपनी संस्कृति से हुए, अपने बच्चे दूर
सोचें यह कैसे हुआ, किसका कहें कुसूर
2)
बेटे कब किसके हुए, जाकर बसे विदेश
परदेशी अब जानिए, पत्नी-भाषा-वेश
3)
नेतागण लेते रहे, चंदा काला रोज
सौ वर्षों का सिलसिला, करिए इसकी खोज
4)
निर्णय भी देगा वही, वह ही उसमें पक्ष
प्रश्न उठाता न्याय पर, न्यायालय का कक्ष
5)
पंच असल में चाहता, बनना ग्राम-प्रधान
निर्णय देने से अधिक, षड्यंत्रों पर ध्यान
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451