चांद से सवाल
चांद से सवाल
आसमां से उतर आया चैत का चांद,
ज़मीं पर लोगों में खुशहाली छाया।
ख़ुशी में मैंने पूछ लिया एक सवाल ,
सवाल सुनकर चांद मुझे बहलाया।
मैंने कहा हे! चांद तुम रहते अकेला,
तुम सोते हो दिन में रहते हो निठल्ला।
कोई बच्चा कहता है तुम्हें मामा जी,
तो तुम किसी चकवा का चांद जी।
तुम्हारे अंग अंग में है कितने दाग।
मां की लोरियाँ में तुम लेते हो भाग।
सूरज भाई के निगरानी में रहते हो,
दीदी पृथ्वी के पीछे फेरा लगाते हो।
नहीं आते हो अपनी हरकतों से बाज,
भुवनी भास्कर बिगाड़ते तुम्हारे काज।
आसमां पर रहते हो पूरा दिखते आधा,
चेहरे पर चमक कभी कम कभी ज्यादा।
कितना निर्लज्ज हो गया है चांद तुम।
नानी की कहानियों में आ जाते हो तुम,
शरीर उबड़ खाबड़ नाक के टेड़ा हो तुम।
बादलों को रखते हो अपने पहरेदार तुम।
चांद चांदनी के साथ आसमां में आते हो,
धरती पर लोगों को आकर भरमाते हो।
चांद ने कहा भले ही लाख है मुझे में दाग।
लोग दुआ साखी में लेते हैं मुझको आज।