Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Jul 2024 · 4 min read

राहें

राहें

नगर में धूम मची थी, सब जगह यही चर्चा थी कि एक नई नाटक मंडली आई है, उसका एक कलाकार जिसका नाम केदार है ,स्वयं शिव से कम नहीं, रचनात्मकता मानो स्वयं उसमें जीवंत हो उठी हो, कभी वह पंडाल सजाता है तो कभी कविता रचता है, गाता है तो मानो उसका स्वर कहीं गहरे में डूबकर, आपके मन को पवित्र कर जाता है, उसके नृत्य में आप शरीर से मुक्त हो ब्रह्मांड में विचरने लगते हो ।

यह सारी बातें नगर श्रेष्ठी की पत्नी सुजाता तक भी पहुँची, उसने रात का नाटक देखने का निर्णय किया । उसके रास्ते के मार्ग धुलवा दिये गए, उसकी पालकी को ताजा फूलों से सजा दिया गया, उसकी पालकी के आगे गायक गाते चले और पीछे सेवकों का समूह चला, सुजाता को आगे की पंक्ति में बिठाया गया, जन समूह को उनसे दो गज की दूरी का स्थान दिया गया ।

नाटक आरम्भ हुआ, केदार शिव के रूप में हिमालय के ऊपर पार्वती के साथ नृत्य का अभ्यास कर रहे है, अभ्यास करते हुए कभी पार्वती गलती करती हैं, तो शिव उन्हें फिर से समझाते है, वह रूठ जाती हैं तो शिव गाकर मनाते है, उस नाटिका में सारे भाव , विभाव , संचारी भाव जीवंत हो उठे थे, अंत में जो रह गया था, वह था शांत मन ।

उस रात के बाद सुजाता का मन कहीं नहीं रम रहा था, वह दिन भर प्रतीक्षा करती, संध्या की, जब वह केदार को मंच पर देखेगी, और उसके शब्दों को अपनी आत्मा में लीन होने देगी ।

नगर में समाचार फैलने लगा कि श्रेष्ठी की पत्नी सुजाता सन्यासनी हो चली है, अब उसकी रुचि श्रृंगार और अमोद प्रमोद में नहीं रही ।

इस वर्ष की पहली दोपहरी थी जब आकाश श्याम वर्णी हो उठा था, बादलों की गड़गड़ाहट सृष्टि के नव निर्माण की सूचना दे रही थी सुजाता के उद्यान के पेड़ पौधे, पशु पक्षी एक रस हो उठे थे , उसे याद आ रहा था , कैसे कल के नाटक में शिव पार्वती से कह रहे थे , “ सुनो प्रिय, हम वैसे एक हो जायें, जैसे वर्षा ऋतु में समस्त प्रकृति एक हो उठती है, सूक्ष्म और स्थूल सब एक ही आशा, एक ही विश्वास को अनुभव करता है। “

सुजाता अपने विचारों में खोई थी कि उसने अनुभव किया कोई उसके गले में कुछ लटका रहा है, झुककर देखा तो पन्नों से जड़ित हार था, कुछ समय पूर्व उसने स्वयं श्रेष्ठी से यह हार लाने का आग्रह किया था, परन्तु आज उसे यह चुभ रहा था, और वह खींचकर उसे फेंक देना चाहती थी, परन्तु श्रेष्ठी के प्रश्नों की बौछार न सहनी पड़े , इसलिए निश्चल खड़ी रही । उस रात श्रेष्ठी के प्रत्येक स्पर्श से उसे वितृष्णा हो रही थी , और उसका मस्तिष्क विद्युत गति से चल रहा था, उसे अपने जीवन का खोखलापन स्पष्ट दिखाई दे रहा था , उस अनचाहे संभोग में वह समझ गई थी कि उसे जीवन से कुछ और चाहिए ।

वह आधी रात, उस गीली धरती पर दौड़ते हुए घर से निकल गई । जब तक उसके कदम केदार के तंबू तक पहुँचे सुबह हो चुकी थी ।

केदार उसे देखकर आश्चर्य चकित हो गया , “ कौन हैं आप ? “
“ सुजाता । क्या तुमने मुझे पहली पंक्ति में बैठा कभी नहीं देखा? “
“ नहीं, सुना है आपके विषय में , अभिनय करते हुए मेरी दृष्टि भीतर होती है, अपने भीतरी मन को ही मैं अपने दर्शकों से संप्रेषित करता हूँ, इसीसे मैं उनके मन के द्वार खटखटाता हूँ । “

“ परन्तु मेरे तो मन के भीतर आ चुके हो । प्रेम करने लगी हूँ तुमसे । “
“ परन्तु आप तो विवाहिता हैं । “
“ हाँ , दो वर्ष हो गए हैं मेरे विवाह को , सोलह वर्ष की आयु में पिता ने विवाह कर दिया था, अब तक जीवन को उस तरह से नहीं जानती थी, जैसे तुम्हारे नाटक देखने के बाद जानने लगी हूँ , तो क्या मुझे जीवन फिर से आरम्भ करने का अधिकार नहीं ?”

केदार बिना उत्तर दिये भीतर चला गया । सुजाता निश्चेष्ट सी वहाँ बहुत देर तक खड़ी रही ।

भूख प्यास से उसका दम निकल रहा था , किसी ने भीतर से आकर उसके समक्ष भोजन तथा जल रख दिया , उसने बिना किसी विरोध के उसे ग्रहण कर लिया । संध्याकाल में नाटक की तैयारी होने लगी, वह सारी हलचल दूर से देखती रही, आज बैठने के लिए उसके पास विशेष स्थान नहीं था, वह पिछली पंक्ति में जाकर बैठ गई , बीच में ही बारिश आरम्भ हो गई, पंडाल में पानी भरने लगा, लोग भाग खड़े हुए ,परन्तु नाटक चलता रहा, उसके और मंच के बीच बारिश का पानी इकट्ठा हो रहा था, शिव कह रहे थे , “ पार्वती मनुष्य बहुत अशांत प्राणी है, व्यक्ति, परिवार,समाज, प्रकृति, कितने घेरों में घिरा है वो , उत्सुकता के साथ जन्मा है, और भावनाओं में घिरा है । “

“ तो मनुष्य को क्या करना चाहिए? “
“ इसका कोई भी स्थाई उत्तर नहीं है । उसे उत्तर ढूँढते रहना चाहिए, और नए उत्तर अपनाने का साहस करना चाहिए । “

मंच पर कुछ क्षण शांति के रहे , फिर पार्वती ने कहा, “ क्या सोच रहें हैं आप? “

“ सोच रहा हूँ , मनुष्य का पहला प्यार स्वयं के लिए होना चाहिए, और दूसरे को प्यार कर सकने की क्षमता, उसकी शक्ति होनी चाहिए, लाचारी नहीं ।”

नाटक समाप्त हो गया था, सुजाता के थके हारे कदम घर की ओर बढ़ गए । वह समझ गई , पहली व्यक्तिगत स्वतंत्रता उसे अपने परिवार में ही खोजनी होगी , भावनाओं का सही सामंजस्य और उत्सुकता से जन्मा उत्साह ही उसे जीवन के सही अर्थ देंगे।

शशि महाजन

———

Sent from my iPhone

170 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

गर्मियों में किस तरह से, ढल‌ रही है जिंदगी।
गर्मियों में किस तरह से, ढल‌ रही है जिंदगी।
सत्य कुमार प्रेमी
राही
राही
Rambali Mishra
देवियाँ
देवियाँ
Shikha Mishra
जागरण के पाठ।
जागरण के पाठ।
Acharya Rama Nand Mandal
काल
काल
विशाल शुक्ल
3327.⚘ *पूर्णिका* ⚘
3327.⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
ख़ुद से अपना हाथ छुड़ा कर - संदीप ठाकुर
ख़ुद से अपना हाथ छुड़ा कर - संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
मैंने देखा है मेरी मां को रात भर रोते ।
मैंने देखा है मेरी मां को रात भर रोते ।
Phool gufran
घमंड करू भी तो किस बात का,
घमंड करू भी तो किस बात का,
पूर्वार्थ
चाहो जिसे चाहो तो बेलौस होके चाहो
चाहो जिसे चाहो तो बेलौस होके चाहो
shabina. Naaz
एक दोहा -प्यासा
एक दोहा -प्यासा
Vijay kumar Pandey
* मेरी प्यारी माँ*
* मेरी प्यारी माँ*
Vaishaligoel
🙅Good Night🙅
🙅Good Night🙅
*प्रणय प्रभात*
Dad's Tales of Yore
Dad's Tales of Yore
Natasha Stephen
समंदर इंतजार में है,
समंदर इंतजार में है,
Manisha Wandhare
सर्जिकल स्ट्राइक
सर्जिकल स्ट्राइक
लक्ष्मी सिंह
आधुनिक सिया बनो
आधुनिक सिया बनो
goutam shaw
उस बाग का फूल ज़रूर बन जाना,
उस बाग का फूल ज़रूर बन जाना,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
हमने हर रिश्ते को अपना माना
हमने हर रिश्ते को अपना माना
Ayushi Verma
आपको बदलाव के लिए ही बनाया गया है।
आपको बदलाव के लिए ही बनाया गया है।
पूर्वार्थ देव
मिलता भी कैसे आसरा
मिलता भी कैसे आसरा
Dr fauzia Naseem shad
........,,?
........,,?
शेखर सिंह
गुज़ारिश आसमां से है
गुज़ारिश आसमां से है
Sangeeta Beniwal
मन के घाव
मन के घाव
Girija Arora
*बदरी तन-मन बरस रही है*
*बदरी तन-मन बरस रही है*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
"भेद-अभेद"
Dr. Kishan tandon kranti
मुझे हार से डर नही लगता क्योंकि मैं जानता हूं यही हार एक दिन
मुझे हार से डर नही लगता क्योंकि मैं जानता हूं यही हार एक दिन
Rj Anand Prajapati
पिता के प्रति श्रद्धा- सुमन
पिता के प्रति श्रद्धा- सुमन
Mrs PUSHPA SHARMA {पुष्पा शर्मा अपराजिता}
जीवन भर चलते रहे,
जीवन भर चलते रहे,
sushil sarna
On the table
On the table
Otteri Selvakumar
Loading...