चक्रव्यूह की राजनीति
चक्रव्यूह की राजनीति है कुछ अजीबोगरीब,
आज तक न समझ पाया इस खेल को कोई,
सत्ता के लोलुप कर रहे है,
आज राजनीतिक अधिकारों का दुरुपयोग,
मार काट, छीना- झपटी,
आज हो गया फैशन आधुनिक राजनीति का।
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खूब चलते हैं जुता चप्पल, डंडे,
संसद के गलियारों में,
बहस और चुहलबाज़ी का बाज़ार गर्म है,
और दबा दी जाती आवाज राजनीति के आदर्शों की,
आदर्श तो राजनीति से मानो कोसों दूर हो गए हों।
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जाति, धर्म, भाषा और संप्रदाय विशेष,
की आवाज़ गूंज रही है संसद के आंगन में,
समाज का हर नागरिक कैसे खुशहाल रहे,
नहीं सोचता इस विषय पर आज कोई।
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देश – सेवा के नाम पर आज हो रही पेट – सेवा,
अपनी लोकप्रियता और कालाबाजारी के जुगाड में,
हर कोई अपना रहा है अलग – अलग हथकंडे
राम नाम को विस्मृत कर,
आज उसी के नाम पर तैयार कर रहे हैं वोट बैंक।
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वोट बैंक को तैयार करने के लिए,
बेझिझक रेत रहे हैं गला एक दूसरे का,
भगवान का नाम भी,
राजनीति का टायकून बना दिया है।
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सत्यता, ईमानदारी, कर्मठता जैसे राजनीति के आदर्श,
आज गायब हो चुके हैं राजनीति से, और,
छल, प्रपंच, झूठ और फरेब का बाजार गर्म है,
जो समाज को कर रहे हैं कुरु कुरु स्वाहा।
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आज राजनीत में देने की बात न होकर,
राजनीति से लेने की बात हो रही है,
ऋषि – मुनि और साधु – संन्यासी भी सत्कर्म छोड़कर,
भगवा वस्त्र पहनकर,
लगा रहे हैं राजनीति के महाकुंभ में डुबकी।
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आज राजनीत में निज स्वार्थों को तबज्जो दी जाती है,
किसान आत्महत्या कर रहा है तो भी सरकार मौन है,
समाज का विकास मीडिया के विज्ञापनों से हो रहा है,
समाज में गरीबी का आज भी बोलबाला है,
पर गरीबी को दूर करने के उपाय न ढूंढ कर,
गरीब को हटाए जाने की राजनीति है,और,
दिखाए जा रहे गरीबी के चीथड़े मीडिया पर बड़े चाव से,
राजनीति की आंच पर पकाई जा रही है स्वार्थों की रोटियां, और,
राजनीति के आदर्शों का छोंका लगा कर पकाई जा रही है दाल-सब्जी।
घोषणा – उक्त रचना मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है। इस रचना का किसी राजनीतिक पार्टी से कोई जुड़ाव या सरोकार नहीं है। यह रचना पहले फेसबुक पेज या व्हाट्स एप ग्रुप पर प्रकाशित नहीं हुई है।
डॉ प्रवीण ठाकुर
भाषा अधिकारी
निगमित निकाय भारत सरकार
शिमला हिमाचल प्रदेश।