घर आ जाना।
गजल
221 1222 221 1222
जब दर्द सताये तुम्हें तो घर आ जाना।
आवाज लगाये तुम्हें तो घर आ जाना।
आबाद रहेगा तुम्हारा इतिबार सदा,
जो शहर न भाये तुम्हें तो घर आ जाना।
उन्वाने-ख़ुदा देकर तनहा न करो मुझको,
कोई समझाये तुम्हें तो घर आ जाना।
हम दोनों मुसाफ़िर हैं इस रेत के दरिया के,
वो याद दिलाये तुम्हें तो घर आ जाना।
मित्रता अत्र चाहिए इश्फ़ाक़ न इल्लत से,
गर भूख जगाये तुम्हें तो घर आ जाना।
घर-बार बिकाऊँ है खुद को खुश रखने में,
पैगाम सुनाये तुम्हें तो घर आ जाना।
तुम बिन बगिया है सूनी जामुन वाली भी,
ये “गाँव” बुलाये तुम्हें तो घर आ जाना।
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आबाद= बसा हुआ, प्रसन्न, समृद्ध।
इतिबार(एतबार)= विश्वास, भरोसा, आसरा।
अत्र= सुगंधित।
इश्फ़ाक़= दया, अनुकम्पा, दयालुता।
इल्लत= दोष, बुरी आदत, बीमारी।
Rishikant Rao Shikhare
18/06/2019