गज़ल :– जो आज भी उसमें गुमान बाकी है ॥
ग़ज़ल :– जो आज भी उसमें गुमान बाकी है !!
बहर :– 2212 2212 1222
जो आज भी उसमें गुमान बाकी है ।,
नातों का सारा इम्तिहान बाकी है ।
वो जंग अपनों से कभी नहीं हारा ।
उसके लहू में जो उफान बाकी है ।
उपहार में जो ज़ख्म है दिए उसने ।
उस जख्म का गहरा निशान बाकी है ।
इन आँधियों में उड़ते झोपड़े अक्सर ।
उनका महल तो आलीशान बाकी है ।
सूरज अभी जो है मुंडेर में तेरे ।
पर देख तो आगे ढलान बाकी है ।
अनुज तिवारी “इन्दवार”