गज़ल :– जमीं का चार गज होगा !!
गज़ल :– जमीं का चार गज होगा !!
बहर :– 1222 -1222 -1222 -1222
शिवालय भी सुसज्जित हो सुशोभित आज हज होगा !!
तुम्हारे होंठ से झड़ता जहाँ फूलों क रज होगा !
कहीं मुझको जला दो तुम कहीं उसको दफन कर दो !
वतन की कोंख का हिस्सा जमीं का चार गज होगा !!
भले ही बाँट लो मज़हब कहीं तुम चाँद सूरज में !
समंदर में समाहित वो कुमुदिनी या जलज होगा !!
खुले पर अर्ज करता वो जुड़े मैं मिन्नतें माँगू !
बता आखिर हथेली से कहीं नाता सुलझ होगा !!
गज़लकार :– अनुज तिवारी “इन्दवार”