गीत
गीत
यह हूक हृदय की निर्विकल्प, या ज्ञान शून्य नीरवता है।
धीरज भी धैर्य न धरता है, पुत्रत्व है कि कायरता है।।
माँ की स्मृतियों का स्पंदन,
रह-रह कर शिरा-धमनियों में।
टीसों का ब्रह्मपुत्र नद हो,
कोलाहल भीषण करता है।।
धीरज भी धैर्य न धरता है, पुत्रत्व है कि कायरता है।
आत्मा-परमात्मा का परिणय,
जल से हिम, हिम से जल बनना।
जड़ जीव ब्रह्म चेतन दर्शन,
जब फूट अश्रु बन झरता है।
धीरज भी धैर्य न धरता है, पुत्रत्व है कि कायरता है।।
माँ के ममतामृत से सिंचित,
अभिमंत्रित रुधिर अश्रु बनकर,
एकांत प्राप्त कर पाते ही,
वाष्पित हो दृग घट भरता है।
धीरज भी धैर्य न धरता है, पुत्रत्व है कि कायरता है।।
कितना गीतामृतं पान किया,
कितना ईश्वर का ध्यान किया।
फिर क्यों इतना मन आकुल है,
क्यों मोह जलधि मन हरता है।
धीरज भी धैर्य न धरता है, पुत्रत्व है कि कायरता है।
मैं तो बहु-ज्ञान प्रकशित मणि,
दृष्टांत दीप का ज्योति पुंज।
सबको सद्ज्ञान सुझाता था,
अब क्यों अज्ञान बिखरता है।।
धीरज भी धैर्य न धरता है, पुत्रत्व है कि कायरता है।
अद्वेतवाद क्या द्वेतवाद, क्या
ब्रह्म तत्व की शुद्ध रश्मि।
क्या-क्या सद्ग्रन्थ सुझाते पर,
मन चुनता बस व्याकुलता है।
धीरज भी धैर्य न धरता है, पुत्रत्व है कि कायरता है।।
चैतन्य भला क्यों तू व्याकुल,
केवल बुलबुला अदृश्य हुआ।
प्रतिबिंब मिटा पर सूर्य अमर,
किंचित वह कभी न मरता है।
फिर क्यों तू धैर्य न धरता है, पुत्रत्व है कि कायरता है।।
यह हूक हृदय की निर्विकल्प, या ज्ञान शून्य नीरवता है।
धीरज भी धैर्य न धरता है, पुत्रत्व है कि कायरता है।।
आचार्य✍????
नित्यानन्द वाजपेयी ‘उपमन्यु’