हिमालय से अटल
हिमालय की तरह रहे अटल, राष्ट्र की शान में रहे बड़े।
अटल थे, वो रहे अटल, अटल ही सत्य के लिये लड़े।।
गंगा की तरह था, उनका प्रवाह।
थकना नहीं था, संसद है गवाह।
हौंसलो के पंख लेकर, दिलो को जीतने संवाद से अड़े।
अटल थे, वो रहे अटल, अटल ही सत्य के लिये लड़े।।
राजनीति में नये रचे, गठबंधन के आयाम।
लिया सबका साथ भी, मन में बसाये राम।।
काल के कपाल पर उकेरे, कवि मन भाव रहे जड़े।
अटल थे, वो रहे अटल, अटल ही सत्य के लिये लड़े।।
गिर जाये, हारे चाहे, रार पर नहीं चले।
जीत के संघर्ष पर, ईमान से न विचले।।
राष्ट्र को परमाणु शक्ति का, रक्षा सूत्र देकर आगे बड़े।
अटल थे, वो रहे अटल, अटल ही सत्य के लिये लड़े।।
भारत के पथों को जोड़ा, स्वर्णिम चतुर्भुज से।
सरिता को भी जोड़ देते, आरूढ़ होते,सूरज से।
चले पड़े थे बदलाव सफ़र, बना सरकार हुये खड़े।
भारत के रत्न अटल, अटल ही सत्य के लिये लड़े।।
(माननीय पूर्व प्रधानमंत्री जी स्व. श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्म दिवस पर समर्पित रचना)
(लेखक – डॉ शिव लहरी)