ग़म नहीं
ग़म नहीं ग़र ये जिंदगी , तेरे नाम हो जाए।
तेरे नाम की एक खूबसूरत शाम हो जाए।
मीठी नज़्में मै लिखूं,बैठ के कड़वे नीम तले,
चाय हो ग़र अदरक वाली ,हसीं अंजाम हो जाए।
मैं सुनाती रहूं ,तुम सुनते रहो , चुपचाप से
फ़साना हो ऐसा की , खूबसूरत पैगाम हो जाये।
खो जाये जब सूरज, पहाड़ियों की ओट में
जगते बुझते जुगनूओं का किस्सा आम हो जाए ।
फिर मिलने का वादा कर ,बिछड़े हम उस रोज़
ऐसे मिलते बिछड़ते , जिंदगी की शाम हो जाए
सुरिंदर कौर