ग़ज़ल
——-ग़ज़ल——
हमनें अपना जिसे बनाया है
उसने हमको किया पराया है
भूल जाऊँ उसे भी मैं लेकिन
मेरी रग रग में वो समाया है
रात डसती है बनके नागिन अब
और दिन ने मजाक़ उड़ाया है
उनके हर इक सितम पे दिल मेरा
ग़म को सह कर भी मुस्कुराया है
ज़ख़्म दिल होता फिर मेरा ताज़ा
याद जब बे वफ़ा वो आया है
मेरे अश्कों के इस समुन्दर ने
ख़्वाहिशे दिल मेरा बहाया है
चैन पल भर न आ रहा ”प्रीतम”
तेरी यादों ने जुल्म ढाया है
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)