ग़ज़ल सगीर
नफरतों से अब रिफाक़त पे असर पड़ता है।
दिल में शक हो तो मुहब्बत में असर पड़ता है।
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खुशु खुज़ू से अमल कोई भी करो साहिब।
नेकियों से तो इबादत पे असर पड़ता है।
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बड़े मजबूत तुम बुनियाद बनाकर रखना।
कच्ची हों ईंट, इमारत पर असर पड़ता है।
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हुस्न रहता है जब बा पर्दा हसीनाओं का।
इससे चेहरे की लताफत असर पड़ता है।
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दूर रखो तुम सियासत को अपने रिश्तों से।
इससे रिश्तों की मुसर्रत पे असर पड़ता है।
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अदल ओ इंसाफ का मीज़ान बनाकर रखना।
दोहरे चेहरों से शराफत पे असर पड़ता है।
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राज़ जो घर के हैं गैरों से न साझा करना।
“सगीर” इस से हिफाजत पे असर पड़ता है।