क्यूं में एक लड़की हूं
डरी डरी सी सहमी सहमी सी
आजकल क्यूं में रहतीं हूं
सितम बरसाती है दुनिया मुझ पे
क्यूं में एक लड़की हूं
बदला है ज़माना फिर भी
कहीं पर क्यूं अंधेरा है
नए विचारों के पिछे पिछे
खेल पूराना क्यूं चलता है
हर बात पर रोखें मुझको
क्या शक्ति का मेरे अंदाजा है
झांसी में जिजाऊ में,फिर भी
लड़की होना क्यूं नफरत है
इस दुनिया के चाल-ढाल से
जब खुद को दूर में रखतीं हूं
कहता है तब ज़माना हम से
मैं लड़की हद से गई हूं
कुछ करें तो हम पाप मानें
ना करें तो समझें खिलौना
लड़की तेरी औकात ही क्या है
क्यूं ये बोले अनपढ़ ज़माना