*क्या छोड़ूँ क्या ले जाऊँ( गीतिका )*
क्या छोड़ूँ क्या ले जाऊँ( गीतिका )
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( 1 )
अंतर्मन की व्यथा यही है किस- किस को समझाऊँ
दुनिया से जब जाऊँ तो क्या छोड़ूँ क्या ले जाऊँ
( 2 )
पेट भर चुका है लेकिन फिर भी मन तो है लोभी
यही सोचता है भोजन को जरा और कुछ खाऊँ
( 3 )
बूढ़े तन में अक्सर आती हैं भावुक इच्छाएँ
बच्चों-जैसे उछलूँ-कूदूँ ऊधम खूब मचाऊँ
( 4 )
पुण्य बताए अब तक केवल मैंने अपने सब को
सोच रहा हूँ पाप छुपाऊँ या वह भी गिनवाऊँ
( 5 )
मैं साधारण व्यक्ति देह में सौ-सौ दोष लिए हूँ
भजूँ किस तरह मैं ईश्वर को कैसे उसको पाऊँ
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451