“समय की पुकार” (सामयिक रचना)
स्वस्थ रहें सुरक्षित रहेंगे,घर ही अब मौज़ ठिकाना।
धार्मिक नगरी घर को समझो,पढ़ें यहीं वेद कुराना।
कोरोना राक्षस हारेगा,दूरी को कवच बनाना।
कर जोड़ नमस्ते करना सब,हाथ भूलके न मिलाना।
जाति धर्म काम नहीं आता,कोरोना यही सिखाता।
मानवता है सर्वोपरि इक,संकट भी मुँह की खाता।
मंदिर मस्ज़िद भी हारें हैं,शिक्षा अस्पताल जीते।
ज़्यादा धन इनपर लगता तो,कोरोना मारा जाता।
ऊँँच नीच भेदभाव पीछे,कोरोना इनसे आगे।
लेकर शिक्षा भारतवासी,नवजीवन को अब जागे।
जीतेंगे बाजी पक्का है,पर ये जीत नयी होगी।
भूलेंगे ना मिलके जीते,मिलके ही रहना आगे।
असली नायक डटे हुए हैं,फ़र्ज़ निभाएं अपना हैं।
कोरोना मुक़्त बने भारत,इन सबका यह सपना है।
स्वास्थ्य विभाग सलाम तुम्हें है,असली नायक तुम ही हो।
सेवा में जीवन दाँव लगा,पीछे अब ना हटना है।
दानी ज्ञानी बुद्धिजीव हर,जैसा जिससे बनता है।
सेवा को तत्पर हर कोई,अब तो मुझको दिखता है।
नेता अभिनेता जनरक्षक,अधिकारी अटल खड़े हैं।
हर भारतवासी चौकन्ना,अपनी किस्मत लिखता है।
कोरोना जिद्दी है तो क्या?इसकी ज़िद भी तोड़ेंगे।
नियमों का पालन करके हम,इसका सिर भी फोड़ेंगे।
संकट आए कितने हमपर,हमने बाजी जीती है।
कोरोना तेरी खैर नहीं,तुमको अब ना छोड़ेंगे।
सरकारें बैठ विचारें यें,समझे हर भारतवासी।
अस्पताल भरे मरीज़ों से,सूने हैं काबा काशी।
मंदिर मस्ज़िद झगड़ा छोड़ो,आज अयोध्या बोले है।
अस्पताल हो तो हँस दूँगी,दूर करूँ मौत उदासी।
(ताटंक छंद)
?आर.एस.प्रीतम?