तुझे बंदिशों में भी अपना राहगुज़र मान लिया,
वह भलामानस / मुसाफिर बैठा
आज जबकि इतना वक़्त हो चुका है
क्या करना उस मित्र का, मुँह पर करता वाह।
सुभद्रा कुमारी चौहान जी की वीर रस पूर्ण कालजयी कविता
कई दिन, कई महीने, कई साल गुजर जाते हैं।
तुम भी तो आजकल हमको चाहते हो
मैं उसको जब पीने लगता मेरे गम वो पी जाती है
क्यों हमें बुनियाद होने की ग़लत-फ़हमी रही ये
गांधी जी और शास्त्री जी जयंती पर विशेष दोहे
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
समय लिखेगा कभी किसी दिन तेरा भी इतिहास
*रामपुर रजा लाइब्रेरी में सुरेंद्र मोहन मिश्र पुरातात्विक संग्रह : एक अवलोकन*