कोरोना काल में पत्रकारों की मनोदशा
भारत में कोरोना की दूसरी लहर अपने चरम पर हैं। भारत में तेजी से बढ़ता कोरोना मरीजों का ग्राफ चिंता का विषय हैं। भारत में अगर पत्रकारों की चर्चा की जाये तो वर्तमान में पत्रकार वर्ग अपनी जान हथेली पर लेकर जन चेतना का कार्य कर रहा है। कोरोना काल में कई पत्रकारों ने जान गवाईं तो कही पत्रकारों ने नौकरी से हाथ धोना पड़ा हैं।
कोरोना से अब तक कई पत्रकारों की मौत हो चुकी हैं। इण्डिया टूडे ग्रुप के नीलांशु शुक्ला , टीवी पत्रकारिता के जाने माने नाम रोहित सरदाना और ग्रुप के अन्य पत्रकार इसकी चपेट में आ गए है। अन्य पत्रकारों की बात करे तो अमृत मोहन, पांडुरंग रायकर आदि अन्य पत्रकारों की कोरोना संक्रमण के कारण मौत हो गई।
पत्रकारों के लिये पत्रकारिता करते समय समाजिक दूरी बनाना मुश्किल होता है। मिसाल के तौर पर बात की जाये तो प्रवासी मजदूरों का पलायन का वक्त हो या चाहे किसान आन्दोलन का समय हो पत्रकार अपनी जान पर खेलकर रिपोर्टिंग की और उनकी बातों को आम जन तक पहुँचाया।
यह बात साफ है कि पत्रकारों के लिये संक्रमण का खतरा है लेकिन कई लोगों के लिए रोजगार जाने का खतरा उससे भी बड़ा है। कोरोना महामारी से कारोबार ठंडा पड़ा तो मीडिया संस्थानों की कमाई पर जबरदस्त प्रभाव पड़ा। तकरीबन सभी टीवी चैनलों और अखबारों ने वेतन में कटौती की। कई संस्थानों ने स्टाफ कज छंटनी भी की। जाहिर है कि नौकरी जाने का तनाव हर किसी के दिमाग में होता है।
कुछ अन्य चुनौतीयों का रिपोर्टिंग के समय सामना करना पड़ता हैं। कोरोना महामारी के दौरान पुलिस द्वारा पत्रकारों के दमन के कई मामले समाने आये हैं। खासतौर पर छोटे शहर के पत्रकारों व संस्थानों पर जैसे की बनारस के एक अखबार ने खबर छापी कि मुसहर समुदाय द्वारा घास की रोटीयां खाने पर रेपॉर्ट हो या प्रधानमंत्री द्वारा गोद लिये गए गाँव में “भुखमरी की झूठी खबर” छापने के आरोप में एफ आई आर हुई की हो। इसी तरह हिमाचल प्रदेश से भी कोरोना लॉक डाउन के दौरान पत्रकारों के दमन और डराने धमाकाने की खबरे आईं। मिसाल के तौर पर हिमाचल प्रदेश में छह पत्रकारों के खिलाफ 10 मामले इसलिए दर्ज किए गए क्योंकि उन्होंने राज्य सरकार की अचानक तालाबंदी के कारण फंसे हुए प्रवासी कामगारों के बीच फैल रही भुखमरी, और स्थानीय प्रशासन की खामियों के बारे में समाचार प्रकाशित किए।
आईपीआई के कोविड-19 प्रेस फ्रीडम ट्रैकर के अनुसार अब तक विश्व भर में 600 से अधिक ऐसे मामले उजागर हुए हैं इनमें या तो प्रेस की स्वतंत्रता का उल्लंघन हुआ है या फिर पत्रकारों पर शारीरिक हमले या जरूरत से ज्यादा सख़्त कार्रवाइयाँ हुई हैं। दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा उल्लंघन और हमले भारत में हुए हैं। आंकड़ों के अनुसार, भारत में 84 मामले सामने आए। विभिन्न कानूनों के तहत भारत में 56 पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया, या उनके खिलाफ पुलिस ने एफआईआर दर्ज की। इसके अलावा 23 पत्रकार हमलों के शिकार हुए। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के अनुसार जनवरी 2021 में पत्रकारों पर 15 से अधिक हमले हुए और यह सभी हमले तब हुए जब पत्रकार कोरोना संक्रमण के दौर में ही चल रहे किसान आंदोलन कवर करने गए थे।
आपको बता दें कि भारत के कुछ राज्यों ने पत्रकारों को को फ़्रंट लाईन वर्कर माना है या दूसरे शब्दों में कहे तो कोरोना वोरियर्स माना हैं। इन राज्यों की सूची में उड़ीसा, मध्यप्रदेश,कर्नाटक, पं.बंगाल व पंजाब आदि राज्यों ने घोषित किय हैं। मध्यप्रदेश सरकारा ने अधिमान्य पत्रकारों को प्राथमिकता देते हुये मुफ्त में कोरोना वेक्सीन लगाने की घोषणा की है। उड़ीसा सरकार ने भी पत्रकरों को बीमा और वेक्सीन की घोषणा की है। झारखंड ने 45 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के पत्रकारों को प्राथमिकता के आधार पर वैक्सीनेशन लगाने की बातें कही गई है। पर प्रश्न वहीं आ कर खड़ा होता है जो अधिमान्य पत्रकार नहीं है उनके बारे में देश की सरकारें क्या सोचती हैं। वह पत्रकार अपनी जान पर खेल कर रिपोर्टिंग कर रहे है।
©️अक्षय दुबे
ग्वालियर म प्र