Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
15 May 2024 · 2 min read

कैसे भूले हिंदुस्तान ?

कैसे भूले हिंदुस्तान ?

_____________________________

यह भारतवर्ष की पुण्य धरा जहाँ सभ्यता सबसे पहले आई,

त्याग,तपस्या,दान, धर्म,की प्रथा जगत को बतलाई,

इसी मिट्टी में लोटे मेरे मानव रूप धीरप्रशांत

मर्यादा पुरुषोत्तम राम! सर्वश्रेष्ठ प्रतिमान!

सत्य धर्म के लिए जिन्होनें कष्ट कई स्वीकार किये,

आदर्शों का मान निभाने त्याग सिंहासन

पथ अरण्य मुह मोड़ लिये।

जहां प्रजा की रक्षा में राजा भी रंक समान जिये,

कट गये शीश भले सिरमौर नहीं झुकने दीये।

जहां साहस गांभीर्य अदम्य और वीरत्व प्रणम्य रहा,

लखा न अघ की ओर कभी अघ न लख पाया जिसे,

विश्व आदर्श पुण्य धरा यह, मातृभूमि की रक्षा हीं जहां जीवन का लक्ष्य रहा।

राजधर्म के उन्हीं चिन्हों को ऊर में जिंदा ले कर राणा के राजकुमार ने राज-पाट,सुख,वैभव त्याग

चुभती तृण पर रातें काटी, तृणों की रोटी खाई।

मुगल बेड़ीयों को पिघला कर सिर पर ताज़ सजाने वाले, वीर शिवाजी, ल्क्ष्मीबाई और न जाने राजा राजकुंवर कितने मातृभूमि की भक्ति में निज सुख की हर चिंता छोड़ राष्ट्र कुल और राजधर्मं की मान बढाई।

त्याग,तपस्या,तर्पण और अर्पण से जिसको सिंचा स्वयं भगवान ने,

बदमाशों ने जकड़ दिया उस भारत को जंज़ीरो में।

उस जंजीर के टुकड़े करने शीश कटाये वीर अनेक, जले,तपे दंड-प्रहार सहे सभी लगती थी जिनको फूलों की कलियाँ भी।

कई कली खिले बिना मुर्झायी, बगिया कितनी वीरान हुई तब जा कर माँ आज़ाद हुई।

उन पुरखों की गौरव गाथा हम हीं नहीं गाते केवल, पूजता संसार है।

आहत होंगे अंबर में वह भी ईसी मिट्टी में जन्मे आज के इन शैतानो से।

स्वहित की रक्षा में कैसे मानवता त्याग दिया ?

दाग भरे दामन हैं जिनके लोकतंत्र का बने पुरोधा

छल प्रपंच लिये अंतर में जनहित का झूठा स्वाँग रचाते।

राष्ट्रहित, राजधर्म से न इनका सरोकार कोई सत्कर्मों का पथ अंजाना दुराचार,अन्याय अनिति लक्ष्य अपनी तिजोरी भरना।

कल्ह तक जिसकी पहचान न थी धन-कुबेर बन गये रंक से,

धँसे पड़े हैं पुत्र मोह में पशुओं का चारा भी चर के।

हैं कलंक ऐसे भी जो माँग रहे प्रमाण राम के होने का,

शर्मिंदा है पशुता भी उन राजनीति के हैवानों से।

कुछ धूर्त, फरेबी आम अदमी बन भरमाते,

वाणी में भक्ति,दिल में लालच भव्य महल अपना बनवाते।

हैं बड़े शातिर लुटेरे, सब्सीडी का जाल बिछाये लूट रहे जन-गण को।

सिंचा जिसने लहू पिला कर, देखो ! कैसे मुख कालिख पोते उन पर भी प्रश्न उठाते ?

बीच बसे दलाल संपोले जहर उगल-उगल कर अपनी किस्मत चमकाए,

इनकी खा कर उनकी, उनकी खा कर इनकी गाये।

शाशन प्रसाशन नाम बड़े, उच्चारण भी नहीं कर पाते,

रटे हुये कुछ प्रश्न उठा कर स्वत: नियुक्त लोककवि बन जाते।

जीनकी काली करतूतों से यह देश हुआ श्मशान,कैसे भुले हिंदुस्तान ??
* मुक्ता रश्मि *
___________________________

Language: Hindi
25 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
प्राण- प्रतिष्ठा
प्राण- प्रतिष्ठा
डा. सूर्यनारायण पाण्डेय
खुद को खोने लगा जब कोई मुझ सा होने लगा।
खुद को खोने लगा जब कोई मुझ सा होने लगा।
शिव प्रताप लोधी
" मुरादें पूरी "
DrLakshman Jha Parimal
बाग़ी
बाग़ी
Shekhar Chandra Mitra
*जिंदगी*
*जिंदगी*
Harminder Kaur
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
वो स्पर्श
वो स्पर्श
Kavita Chouhan
কুয়াশার কাছে শিখেছি
কুয়াশার কাছে শিখেছি
Sakhawat Jisan
दोस्तों अगर किसी का दर्द देखकर आपकी आत्मा तिलमिला रही है, तो
दोस्तों अगर किसी का दर्द देखकर आपकी आत्मा तिलमिला रही है, तो
Sunil Maheshwari
*घुटन बहुत है बरसो बादल(हिंदी गजल/गीतिका)*
*घुटन बहुत है बरसो बादल(हिंदी गजल/गीतिका)*
Ravi Prakash
बात पते की कहती नानी।
बात पते की कहती नानी।
Vedha Singh
आप और हम जीवन के सच
आप और हम जीवन के सच
Neeraj Agarwal
"What comes easy won't last,
पूर्वार्थ
3356.⚘ *पूर्णिका* ⚘
3356.⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
#दोहा
#दोहा
*प्रणय प्रभात*
गज़ल
गज़ल
सत्य कुमार प्रेमी
आ बैठ मेरे पास मन
आ बैठ मेरे पास मन
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
ज़माने की नजर से।
ज़माने की नजर से।
Taj Mohammad
मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
Anand Kumar
*चिंता चिता समान है*
*चिंता चिता समान है*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
जाति-धर्म में सब बटे,
जाति-धर्म में सब बटे,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
धड़कनें जो मेरी थम भी जाये तो,
धड़कनें जो मेरी थम भी जाये तो,
हिमांशु Kulshrestha
"गरीबों की दिवाली"
Yogendra Chaturwedi
हर घर में नहीं आती लक्ष्मी
हर घर में नहीं आती लक्ष्मी
कवि रमेशराज
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
डॉ अरुण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
गाँव सहर मे कोन तीत कोन मीठ! / MUSAFIR BAITHA
गाँव सहर मे कोन तीत कोन मीठ! / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
एक ऐसा दृश्य जो दिल को दर्द से भर दे और आंखों को आंसुओं से।
एक ऐसा दृश्य जो दिल को दर्द से भर दे और आंखों को आंसुओं से।
Rekha khichi
फिर से अपने चमन में ख़ुशी चाहिए
फिर से अपने चमन में ख़ुशी चाहिए
Monika Arora
मैं तुमसे दुर नहीं हूँ जानम,
मैं तुमसे दुर नहीं हूँ जानम,
Dr. Man Mohan Krishna
हो नजरों में हया नहीं,
हो नजरों में हया नहीं,
Sanjay ' शून्य'
Loading...