सीढ़ियों को दूर से देखने की बजाय नजदीक आकर सीढ़ी पर चढ़ने का
दूसरों का दर्द महसूस करने वाला इंसान ही
निभा गये चाणक्य सा,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
दूर अब न रहो पास आया करो,
वक्त तुम्हारा साथ न दे तो पीछे कदम हटाना ना
‘ विरोधरस ‘---3. || विरोध-रस के आलंबन विभाव || +रमेशराज
हमें दुख देकर खुश हुए थे आप
सोने को जमीं,ओढ़ने को आसमान रखिए
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नज़रों में तेरी झाँकूँ तो, नज़ारे बाहें फैला कर बुलाते हैं।
जो लोग अपनी जिंदगी से संतुष्ट होते हैं वे सुकून भरी जिंदगी ज
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
*वह भी क्या दिन थे : बारात में नखरे करने के 【हास्य-व्यंग्य 】
* कैसे अपना प्रेम बुहारें *
मेरी जान बस रही तेरे गाल के तिल में
“अखनो मिथिला कानि रहल अछि ”
तुझसे मिलते हुए यूँ तो एक जमाना गुजरा
জপ জপ কালী নাম জপ জপ দুর্গা নাম