” कैसा हूँ “
” कैसा हूँ ”
जनाब पूछना ही है तो , आकर पूछो कैसा हूँ,
हाल अपने दिल का भी , सुनाकर पूछो कैसा हूँ।
जज्बात बिखरे पड़े हैं बेखबर से राहों में ,
दिल की बेरूखी को दिलासा , दिलाकर पूछो कैसा हूँ।
बाजार की इस भीड़ में करे हर कोई मोल भाव,
टूटे दिल की सही कीमत , लगाकर पूछो कैसा हूँ।
महरूम हूँ अपनों की वफाई के मलहम से ,
आग दिल में अपने भी , जलाकर पूछो कैसा हूँ।
वीरानगी सी छाई है इस चमन ए गुलिश्ता में ,
सूखे पतझड़ में बहारें , खिलाकर पूछो कैसा हूँ।
किश्ती डोल रही है दूर किनारों से,
डूबती लहरों से , बचाकर पूछो कैसा हूँ।
रिवायत जिंदगी की है जुदा जुदा ,
कब्र में दफ़न वफ़ा के किस्से , उठाकर पूछो कैसा हूँ।
बिन तेरे कटती नहीं लम्बी ये रातें ,
इस भीगी बरसात में , पुकारकर पूछो कैसा हूँ।
‘असीमित’ अनकही जिंदगी के ये फलसफे ,
लहजे में अपनेपन की खुशबू , मिलाकर पूछो कैसा हूँ।
रचनाकार -डॉ मुकेश ‘असीमित’