कुटुंब का उद्धार हो
कुटुंब का उद्धार हो ज्ञान हो संस्कार हो,
हो ख़त्म सारी कुरुतियां हर मन गंगा की धार हो,
प्रकाश जब तेरा पड़े रौशन अंधकार हो जाए,
अज्ञानता फिर दूर हो जीवन प्रभात हो जाए,
तू ही ब्रम्हा विष्णु है शंकर सा तुझमे तेज है,
रचयिता तू धरा का ज्ञान का तू वेग है ,
भविष्य की चुनौतियों से अवगत कराता ,
गिर कर कैसे उठाना है तू हमको सिखाता,
ज्ञान से तेरे सींचा तब उतरा संसार में,
नीर सा बहता चला मैं पत्थरों चट्टान में ,
बिन भेद ज्ञान है गुरु तू कितना महान है,
सृजन करता है सभी का धरा का तू मान है,
आचार विचार व्यवहार में सादा पोशाग है तू ,
नवरंग भरता तू वहाँ जो मन थोड़ा निराश है,
छोड़ अपनी ख़्वाहिशें निशदिन दुनिया रचता है,
धंधा नहीं ये सुख है आनंद मिलता तुझे प्रगाढ़ है,
सप्रेम वंदन करता हूं गुरु मात-पिता फिर ईश्वर का ,
ज्ञान न होता छाव न होता तो फिर ये जीवन नश्वर था,
गुरु शिष्य के इस रिस्ते का सम्मान मैं बढ़ाऊंगा,
चलकर तेरे स्रोत के पदचिन्हों पर अपना धर्म निभाउंगा,
नमन करता हूँ गुरु मैं आपके उपकार को,
नमन उन धरा पुत्र के हर एक कर्णधार को …..