Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
3 May 2024 · 1 min read

प्रकृति का दर्द– गहरी संवेदना।

मैंने तुमको पला पोसा पर तुमने क्या मोल दिया है
एक स्वार्थ कि खातिर हरे भरे जीवन को तौल दिया है।

मैं तुमको भोजन देता हूं, पानी भी मुझसे आता है,
तेज धूप भी सही है मैंने, पर तुमको छाया देता हूं,
पर इन उपकारों के बदले तुमने क्या उपहार दिया है एक स्वार्थ कि खातिर हरे भरे जीवन को तौल दिया है।

मैंने तुमको कलम दिया है, पेपर भी मैं ही देता हूं,
मेरी वजह से तुम हो पढ़ते, फिर भी तुम कितने इतराते
पेपर को बर्बाद हो करते, मेरे जीवन को हो हरते,
मेरा यूं उपभोग किया है, सब नाजायज भोग किया है
एक स्वार्थ कि खातिर हरे भरे जीवन को तौल दिया है।

संविधान कहता तुमको, मुझको करुणा दया से देखो,
कभी न काटो मुझको पालो,सदा ही तुम मुझको सहलाओ।
मेरी छोड़ो उसकी सोचो, जिसने ये सम्मान दिया है
जिसकी वजह से तुम स्वतंत्र हो, मर्जी से कुछ भी करते हो
उसके दिल में छेद किया है उसका भी अपमान किया है
एक स्वार्थ कि खातिर हरे भरे जीवन को तौल दिया है।

लेखक/कवि
अभिषेक सोनी “अभिमुख”

Loading...