*किस शहर में रहना पड़े (गीतिका)*
किस शहर में रहना पड़े (गीतिका)
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(1)
कौन जाने किसके घर को ,अपना घर कहना पड़े
क्या पता किस मोड़ पर ,किस शहर में रहना पड़े
(2)
अपनी गली-अपने मौहल्ले ,स्वप्न- से हो जाएँ न
कब हवा के संग ,खुशबू की तरह बहना पड़े
(3)
बोला करती जिनकी तूती ,है नवाबों की तरह
वक्त का चाबुक उन्हें भी ,क्या पता सहना पड़े
(4)
नाज अपने रूप पर है ,जिस इमारत को बहुत
क्या पता उसको भी एक प्रहार में ढहना पड़े
(5)
करवट बदलना मौसमों की है सदा आदत रही
शीत के फिर बाद शायद ,आग में दहना पड़े
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451