किसको सुनाऊँ
** किसको सुनाऊँ **
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प्रीत का नवगीत मैं,
किसको सुनाऊं।
तुम नहीं हो पास मेरे,
महक फूलों में तुम्हारी।
तुम भले आँखों से ओझल,
किन्तु मन में छवि तुम्हारी।
बीच की यह दूरियाँ,
कैसे मिटाऊँ।
देखता हर पुष्प मेँ प्रिय,
रूप की मोहक छवि।
झांकता है झील में ज्यों,
भोर का निखरा रवि।
हर दृश्य में दिखते तुम्हीं,
कैसे भुलाऊँ।
चाँदनी की भव्यता में,
रजत आभा है तुम्हारी।
सीप में मोती हो जैसे,
स्पंदनों में ध्वनि तुम्हारी।
प्रेम का संसार मैं,
कैसे सजाऊँ।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य।
मण्डी (हि. प्र.)