काश मैं हवा बन जाती…
काश मैं हवा बन जाती…
धरती को अपना आसन और आसमान को अपनी छत मानने वाला,चांदनी रात को अपने उस आशियाने की रोशनी बनाकर,रातें गुजारने वाला वह मजबूर दिल वाला इंसान…काश, मैं भी उसके लिए कुछ कर पाती।।
पूरी रात न सही,कुछ क्षण तो उसके संग जरूर बिताती।मध्य रात्रि जुगनुओं संग, हल्की गति में बहती,
मेरे संग कोमल पौधों की पत्तियों की सरसराहट,उसकी नींद में सहायक मीठी लोरी बन जाती।।
जब वह सुंदर और विशाल हृदय अपने सपनों में खो जाता,तब मैं उसके सपनों की सरगम बनती।उसकी अधूरी उम्मीदों की मुस्कान,और थके मन की सुकून भरी सांस बन जाती।।
मैं उसकी बेचैन धड़कनों को सहलाती,उसके बिखरे ख्यालों को सहेजती।काश, मैं हवा बन पाती,
हर दर्द छूकर बहा ले जाती।।
काश, मैं उसकी हर रात को उसकी सुबह बनाती।