Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
22 May 2024 · 1 min read

तुम इतने आजाद हो गये हो

तुम इतने आजाद हो गये हो,
कि दूसरों को गुलाम समझ लेते हो।
इंसानियत को मारकर ,
पार्श्विक की महफिल सजा लेते हो।
तुम इतने आजाद . . . . . .
ये कैसी आजादी है,
जो तुम्हें पशु से भी नीच,
व्यवहार करने की,
आजादी मिल जाती है।
और किसी को,
अपने ऊपर हुए अमानवीय,
कृत्य के लिए,
न्याय की भीख मांगनी पड़ती है।
मानवता को मारकर,
पशुता की जश्न मना लेते हो।
तुम इतने आबाद हो गये हो,
कि दूसरों को बर्बाद समझ लेते हो।
तुम इतने आजाद . . . . . .
ये कैसी बंदिशें है,
कि लोगों को स्वतन्त्रता से,
जीने पर भी,
पाबंदी पे पाबंदी लगाई जाती है।
और किसी को,
श्रद्धा से माथा टेकने से रोक कर,
देवों की भूमि से ही भगाई जाती है।
इंसानों को डराकर,
डर का राज बना लेते हो।
तुम इतने विकसित मानुष हो गये हो,
कि दूसरों को अमानुष समझ लेते हो।
तुम इतने आजाद . . . . . .

नेताम आर सी

Loading...