कावड़ियों की धूम है,
कावड़ियों की धूम है,
बादलों ने हर गली मौहल्ले;
को धेरा है।
सावन आया झूम के;
शम्भू के जयकारों से;
हर मन्दिर का कोना – कोना है।
भीगता हर कोई, भीगती हर ब्यार है,
कमंडल में जल लेकर हर कोई;
मन्दिर को जाने के लिए तैयार है।
शम्भू ही नाद है, शम्भू ही अनंत है;
शम्भू की भक्ति आदि और अनंत है।
जब पालनहार क्षीर निद्रा को जाते हैं,
ऐसे मे सृष्टि चलाने को स्वयं प्रभू;
परिवार संग पृथ्वी को आते है।
गरजता मेघ है, बरसता घनघोर पानी है।
जीवन के अस्तित्व को हरा कर दे,
सावन ऐसी कहानी है।
कहीं नाचते मोर, तो कहीं पानी में तैरती कागजों की नावें,
कहीं सावन के संगीत,
तो कहीं कजरी, तो कहीं तीज।
कहीं पेड़ों पर झूले पड़ गए,
पेड़ भी मानों हरे भरे सज गए।
सावन स्वयं शम्भू है, शम्भू स्वयं संसार है;
सावन में शम्भू की भक्ति को,
अब हर कोई तैयार है।