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11 Dec 2016 · 1 min read

कारवान -ए- बहार चलें

कारवान -ए- बहार चलें
गर तेरी यादगार चलें

सफ़र में अपने ख़ौफ़ का
करते हुये शिकार चलें

हदें रहें ना आसपास
हौसलों की बहार चलें

अब ज़ुलमतें मिटानी हैं
एक दो नहीं हज़ार चलें

आ इंसाँ बन जायें फिर
जंग-ए- ज़िंदगी हार चलें

मौसम सी बदले दुनियां
गुलों के संग खार चलें

जी भर गया संसार से
कुछ दिन को हरिद्वार चलें

पाप क्या है पुण्य क्या
दिल का बोझ उतार चलें

वक़्त को नहीं समझी ‘सरु’
चलो वक़्त के पार चलें

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