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29 Jan 2024 · 1 min read

गुमाँ हैं हमको हम बंदर से इंसाँ बन चुके हैं पर

गुमाँ हैं हमको हम बंदर से इंसाँ बन चुके हैं पर
मदारी की तरह ये ज़िंदगी हर दिन नचाती है

जॉनी अहमद क़ैस

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