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3 May 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

रोज़ जो आग हम जलाते हैं ।
रोज़ वो आग हम बुझाते हैं ।

आदमी चीज़ जो बनाते हैं ।
आदमी ही उसे मिटाते हैं ।

कोई दानिश अलग नहीं होता,
हम सभी सीखते – सिखाते हैं ।

जिन्दगी रोज़ ही गुज़रती है,
लोग आते हैं , लोग जाते हैं ।

खाक ने आजमा लिया हमको,
और हम खाक आजमाते हैं ।
०००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी

Language: Hindi
1 Like · 26 Views
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