“कारवाँ”
“कारवाँ”
गुजरता ही जा रहा उम्र का ये कारवाँ,
लगाम लगती नहीं जिन्दगी की रफ्तार में।
आशियाना भी अब तलक बस न सका,
ऐसे में क्या रक्खा है ताज और मीनार में।
“कारवाँ”
गुजरता ही जा रहा उम्र का ये कारवाँ,
लगाम लगती नहीं जिन्दगी की रफ्तार में।
आशियाना भी अब तलक बस न सका,
ऐसे में क्या रक्खा है ताज और मीनार में।