कवि की परिभाषा
कहते कवि उसको सदा,समझे जग का मर्म।
सुख -दुख की अभिभूत होे, माने कविता धर्म।।
माने कविता धर्म, कर्म कविता को लिखना।
सरस-छंद या मुक्त, प्रवाह सुसज्जित दिखना।।
कविता ऐसी होय ,दिखे जिसमें सच की छवि।
पाठक जाए रीझ,वही होता उत्तम कवि।।
**माया शर्मा,पंचदेवरी,गोपालगंज(बिहार)*