दीप जले
जब सारी धरती आन मिले,
जब मानवता का स्नेह जगे,
जब हर मानव बंधु-सा लगे,
तब मन ही मन में दीप जले।।
जब भाई-भाई के गले लगे,
जब न रहीम और राम लगे,
जब कभी न वैर का भाव जगे,
तब मन ही मन में दीप जले।।
जब एक दूजे का साथ रहे,
जब अमन चैन का नाम रहे,
जब मात-पिता का प्यार रहे,
तब मन ही मन में दीप जले।।
जब कोई न भेदभाव रहे,
जब ऊपरवाला साथ रहे,
जब रावण का न मान रहे,
तब मन ही मन में दीप जले ।।
जब हर सीता की लाज रहे,
जब रोटी-कपड़ा-मकान रहे,
जब जीने का अधिकार रहे,
तब मन ही मन में दीप जले ।।